गोरखपुर: कहते हैं कि हर कामयाब व्यक्ति के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है. कुछ ऐसी ही कहानी बेलासी देबी की है. बेलासी देबी की सहभागिता से पति और पुत्र ने 3 स्टेट अवार्ड जीते हैं. वहीं ससुर को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनकी कला को सराह चुके हैं. बेलासी देबी ने विश्व पटल पर टेराकोटा औरंगाबाद का नाम रोशन करने में विशेष योगदान दिया है.
बेलासी देबी कोपहली बार मिला अटल जी से मिलने का सौभाग्य
बेलासी देबी को अटल जी से मिलने का सौभाग्य दिल्ली और ग्वालियर में प्राप्त हुआ. उनके हुनर की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी प्रशंसा की थी. आपको जानकर हैरत जरूर होगी, लेकिन यही सच्चाई है कि बेलासी देबी के सहयोग से उनके परिवार को इतना बल मिला कि उनके ससुर राष्ट्रीय पुरस्कार और पति सहित दो पुत्र राज्य पुरस्कार से नवाजे गए. आज वृद्धावस्था में भी देश का नाम रोशन करने का जुनून रखती हैं. उसको साकार करने के लिए आज भी कुछ खास करने की जद्दोजहद करती हैं.
मिट्टी को आकार देकर जीविकोपार्जन करती थीं बेलासी देबी
जनपद के कूड़ाघाट के सिंघड़िया निवासी स्वर्गीय रामलक्षन प्रजापति की पुत्री बेलासी देबी का विवाह बाल्य अवस्था वर्ष 1965 में जनपद के औरंगाबाद निवासी रामचन्द्र प्रजापति से हुआ. 1970 में दूसरी शादी के दौरान औरंगाबाद पहुंचीं. कुछ दिनों में घर गृहस्थी संभालने लगीं. उनका पूरा परिवार मिट्टी को आकार देकर जीविकोपार्जन करता है. बेलासी देवी धीरे-धीरे शिल्पी का हुनर सीख कर पति का सहयोग करने लगीं. इससे पहले मायके में शिल्पी कला से इतर थीं.
बेलासी के पति को औरंगाबाद में मिला पहला पुरस्कार
रामचन्द्र बताते है कि पत्नी के सहयोग से बल और आत्मविश्वास दोनों मिला. मैं खुलकर अपनी पुस्तैनी कला की इबारत लिखने के दरमियां पत्नी का साथ कदम दर कदम मिला तो नक्काशी में निखार आने लगा. उन्होंने अपने हुनर से मिट्टी से लव-कुश के घोड़ा का रूप दिया. इसके लिए उनको अप्रैल 1979 में तत्कालीन गवर्नर और मुख्यमंत्री रामनरेश यादव द्वारा राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया. बस यहीं से बुलन्दियां छूने का सिलसिला शुरू हुआ और चलता रहा.