गोरखपुरः उत्तर प्रदेश सरकार की हठधर्मिता के आगे परीषदीय अनुदेशक झुकने को तैयार नहीं है. कई बार राजधानी में प्रदर्शन के दौरान लाठियां खाने के बाद केन्द्र सरकार ने उनके मानदेय को बढ़ाकर 17000 कर दिया. लेकिन, प्रदेश सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है. उल्टे अनुदेशकों का मानदेय 8,470 रुपये से घटाकर 7000 रुपये कर दिया गया. इसके अलावा नौ माह की रिकवरी भी किया गया. अब वे न्याय की मांग को लेकर 2000 पोस्टकार्ड अपने बच्चों के हाथों से लिखवाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजकर उनका ध्यान आकर्षित किया है.
गोरखपुर के इंदिरा तिराहा पर बच्चों के साथ अनुदेशकों ने 2000 पोस्टकार्ड लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजे हैं. इस दौरान अनुदेशक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा परिषद के जूनियर हाई स्कूल में 30 हजार अनुदेशक कार्यरत हैं. 15 मई 2017 को भारत सरकार की पीएडी बोर्ड की बैठक में उनके मानदेय को 8,470 से बढ़ाकर 17000 रुपये कर दिया गया.
हाईकोर्ट ने दिया था पूरे भुगतान का आदेश
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार की हठधर्मिता के कारण उनका मानदेय बढ़ाया नहीं गया. उत्तर प्रदेश सरकार ने उनका मानदेय बढ़ाने के बजाय घटाकर 7000 कर दिया गया. उन्होंने बताया कि नौ महीने की रिकवरी भी की गई. इसके बाद वे लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ बेंच में भी अपील की. हाईकोर्ट ने ये फैसला दिया कि मार्च 2017 से उत्तर प्रदेश के समस्त अनुदेशकों का अब तक का 9 प्रतिशत की ब्याज दर के साथ भुगतान किया जाए. लेकिन 3.5 वर्ष बीत जाने के बाद भी उनका भुगतान नहीं किया गया है.