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अंग्रेजी हुकूमत के नहीं अब भारतीय कलर सिग्नल के इशारे पर एनईआर में दौड़ेंगी ट्रेनें - Shahgarh Pilibhit Indara Dohrighat

देशभर में अंग्रेजों के दौर में लगाए गए रेलवे के सिग्नल को हटाने के बाद नए भारतीय कलर सिग्नल को स्थापित किया गया है. इसके चलते ट्रेनों की गति और समय में सुधार भी देखने को मिला है.

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रेलवे के सिग्नल में बदलाव

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Published : May 31, 2022, 6:36 PM IST

गोरखपुर: रेलवे का आधुनिकीकरण करने में जुटे रेल मंत्रालय के प्रयास का असर भी देखने को मिल रहा है. दुर्घटनाओं में जहां कमी आई है तो गति और समय में भी ट्रेनों में सुधार हुआ है. कहा जा रहा है कि ये सफलता देशभर में अंग्रेजों के दौर में लगाए गए रेलवे के सिग्नल को हटाने के बाद नए भारतीय कलर सिग्नल को स्थापित करने से मिली है. इस अभियान से पूर्वोत्तर रेलवे भी अछूता नहीं है.

इस क्षेत्र की सभी बड़ी लाइनों पर अंग्रेजों के जमाने के लगाए गए " सेमा फोर" सिग्नल को हटा दिया गया है. उनकी जगह भारतीय कलर सिग्नल लगा दिए गए हैं. शेष बची छोटी लाइनों पर भी अब ऐसे सिग्नल को बदलने का कार्य तेजी से किया जा रहा है, जिसकी लंबाई करीब 282 किलोमीटर है.

पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह के मुताबिक कलर सिग्नल एक किलोमीटर से ज्यादा दूर से ही ड्राइवर को नजर आने लगता है, जिसके हिसाब से वह ट्रेन की गति बढ़ा और घटा सकता है. उनका कहना है कि बड़ी लाइन पर इसे सफलतापूर्वक स्थापित करने के बाद अब छोटी लाइनों पर भी स्थापित किया जा रहा है, जिसमें तीन रूटों पर काम चल रहा है.

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वहीं, यह रूट शाहगढ़-पीलीभीत, इंदारा-दोहरीघाट, बहराइच-नानपारा-नेपालगंज हैं, जो बहुत जल्द नए सिग्नल से जुड़ जाएंगे. बता दें कि पूर्वोत्तर रेलवे में कुल रूट 3470.9 किलोमीटर का है, जिसमें बड़ी लाइन 3188.75 किलोमीटर की है तो छोटी लाइन 282 किलोमीटर की दूरी में है. इनमें करीब 500 स्टेशन भी है, जो आधुनिकता के कई मुकाम हासिल करने में लगे हैं.

दरअसल, अंग्रेजों के जमाने में लगाया गए सेमा फोर सिग्नल पूरी तरह से मैकेनिकल है, जिसे संचालित करने के लिए हर सिग्नल पर एक कर्मचारी तैनात करने की आवश्यकता होती है, जो पॉइंट बनाने के बाद सिग्नल देता है. इसमें तार के टूटने की आशंका भी बनी रहती है. इसके चलते कभी-कभी ट्रेनों को रोकना पड़ जाता है और ट्रेन लेट होती हैं. इस सिग्नल कि दृश्यता भी कम होती है और ड्राइवर को कम दिखता है और उसे गति धीमी करके चलना पड़ता है. लेकिन इसको हटाकर भारतीय पद्धति के जिस कलर सिग्नल को लगाया गया है वह पूरी तरह से ऑनलाइन है, जिसके लिए रेल के पटरियों के पास केबल बिछाया जाता है, जो यार्ड के दोनों तरफ लगे सिग्नल से जुड़ा होता है.

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