गोरखपुरःपुलिस महकमे की प्रशासनिक व्यवस्था के अनुसार गोरखपुर जोन में कुल 11 जिले आते हैं, जिनमें मौजूदा समय में प्रेमियों के साथ लड़कियों के फरार होने की घटना काफी बढ़ी हुई है. अगर पुलिस के आंकड़ों पर गौर करें तो इस वर्ष 2022 में 1 जनवरी से लेकर अप्रैल महीने तक भागने वाले प्रेमी-प्रेमिकाओं के भागने की 500 से ज्यादा घटना सामने आ चुकी हैं.
यानी हर दिन लगभग 5 लड़कियां घर छोड़कर अपने प्रेमी के साथ फरार हो रही हैं. इन सभी मामलों में पुलिस ने अपहरण का मुकदमा दर्ज किया है. लेकिन इन्हें बरामद करने में पुलिस के पसीने छूट जा रहे हैं. एडीजी जोन अखिल कुमार का मानना है कि अधिकांश लड़कियों के भागने की घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं. जिसकी गवाही आंकड़े दे रहे हैं. वहीं शहरी इलाकों में यह घटनाएं कम घट रही हैं. लेकिन यहां दूसरे तरह के मामले सामने आ रहे हैं.
पुलिस के अनुसार नाबालिग बेटियां प्रेमी साथ घर छोड़कर अपने घरों से काफी दूर निकल जाती हैं. वह हैदराबाद, लुधियाना, चंडीगढ़, दिल्ली, गुरुग्राम, मुंबई, पुणे, चेन्नई जैसे बड़े शहरों को सुरक्षित स्थान के रूप में चुनती हैं. जिसका कारण है कि रोजी रोटी की दिशा में इन जगहों पर उन्हें काफी मदद मिलती है और वह अपने प्रेमी के साथ रहना शुरू कर देती हैं. काफी दूर चले जाने से पुलिस को इनकी बरामदगी करने में भी काफी दिक्कतें आती हैं. वहीं, इनकी बरामदगी करने के लिए पुलिस को अपनी ही जेब ढीली करनी पड़ती है. यह पुलिस के लिए सबसे बड़ा दर्द है. एक मामले में बरामदगी के लिए विभाग से केवल पांच सौ रुपये ही मिलते हैं. भला इतने पैसे में इतने दूर के लोकेशन पर जाना और फरार प्रेमी-प्रेमिकाओं की तलाश कर उन्हें घर लाना, जांच अधिकारी और उसकी टीम के लिए संभव नहीं है.
खास बात यह है यह कि ऐसे मामलों में पांच सौ रुपये यात्रा भत्ता के रूप में विभाग द्वारा दिया जाता है. जबकि इन पैसों को पाने में भी काफी समय लग जाता है. जबकि एक-एक मामले में लड़कियों को बरामद कर वापस लाने में पुलिस के 10 से 20 हजार खर्च हो जाते हैं. इस मुकदमे की विवेचना करने वाले को अपने जेब से सभी खर्च उठाना पड़ता है. खास बात यह है कि विवेचक को लड़कियों की बरामदगी के लिए अपने साथ दो महिला पुलिसकर्मियों को भी ले जाना पड़ता है. ट्रेन का किराया हो या अन्य खर्च इस पुलिस टीम को ही वहन करना पड़ता है. इन बेटियों को बरामद करने में आ रही दिक्कतों को देखते हुए एडीजी और डीआईजी फंड को बढ़ाने के लिए शासन को पत्र लिख चुके हैं. लेकिन अभी इसको शासन स्तर पर अमल में नहीं लाया जा सका है.