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गोरखपुर: जैन धर्म में 'पर्यूषण' पर्व का क्या है महत्व, देखिए इस रिपोर्ट में

पर्यूषण पर्व जैनियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. आमतौर पर अगस्त या सितंबर में मनाया जाता है. इस दिन यथा शक्ति उपवास रखा जाता है.

क्यों मनाया जाता है पर्यूषण पर्व.
क्यों मनाया जाता है पर्यूषण पर्व.

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Published : Aug 23, 2020, 8:44 AM IST

गोरखपुर: आत्म शुद्धि की ओर ले जाने वाले दिगंबर जैन समाज के 'पर्यूषण पर्व' की शुरुआत कल यानि 23 अगस्त से हो रही है. 10 दिन तक चलने वाले इस पर्व में हर दिन अलग-अलग धर्म की पूजा होती है. इसलिए इसे दशक्षण पर्व भी कहा जाता है, जिसकी तैयारी मंदिर में पूरी हो चुकी है. यहां तक कि मंदिर से जुड़े हुए लोग कोरोना काल को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य तैयारियों पर भी विशेष ध्यान दे रहे हैं. जिससे पूजा अर्चना बिना बाधा और संकट के पूरी की जा सके. करीब चार सौ साल पुराने गोरखपुर के दिगंबर जैन मंदिर में सुबह 6:30 बजे से हवन- पूजन के साथ इस पूजा का शुभारंभ होगा, जो 10 दिन तक चलेगा.

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श्री पारसनाथ दिगंबर जैन सोसायटी के अध्यक्ष पुष्पदंत जैन ने बताया है कि 23 अगस्त को उत्तम क्षमा धर्म के पूजन से इस पर्व की शुरुआत होगी. 1 सितंबर को उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म और अनंत चतुर्दशी के पूजन से पूर्णाहुति होगी. 3 सितंबर को क्षमावाणी प्रार्थना का आयोजन किया जाएगा. मंदिर में कोई भी श्रद्धालु पूजन के लिए आ सकता है, जिसे मंदिर में ही पूजन सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी. इस दौरान उसका मास्क लगाना बेहद जरूरी होगा और मंदिर में प्रवेश के बाद शारीरिक दूरी का पालन भी करना होगा.

उन्होंने कहा कि जैन धर्म का यह पर्व सत्य और अहिंसा के मार्ग पर लोगों को ले जाने की प्रेरणा देता है. जिसे समाज के हर धर्म का व्यक्ति अपनाकर अपने जीवन को सुख में बना सकता है. उन्होंने कहा कि जैन धर्म कहता है कि सूर्यास्त से पहले ही यदि भोजन कर लिया जाए तो जीवन कई तरह के रोगों से मुक्त हो जाता है. इस 10 दिन में एक समय ही भोजन का विधान है. यहां तक कि लोग सिर्फ जल ग्रहण करके पूजा करते हैं.

उन्होंने कहा कि 10 दिन तक चलने वाले इस पर्व में जो 10 धर्म की बात की जाती है वह उत्तम क्षमा, उत्तम आर्जव, शौर्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रम्हचर्य शामिल हैं. मान्यता है कि इस अति प्राचीन मंदिर में पर्यूषण पर्व के दौरान जो कोई भी श्रद्धा लेके आता है, उसे मनोवांछित फल प्राप्त होता है.

पुष्पदंत जैन ने कहा है कि भगवान महावीर ने जियो और जीने दो का जो संदेश दिया है, वह हर मनुष्य के लिए एक आदर्श की चीज है. उन्होंने कहा कि महावीर ने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, चर, ब्रम्हचर्य की बात कहा है. इसमें से जो भी धर्म व्यक्ति अपनाएगा उसके जीवन में सुख और लाभ की प्राप्ति होगी ही. पुष्पदंत जैन ने कहा कि जियो और जीने दो के सिद्धांत का मतलब ही है कि किसी के जीवन में बेवजह की दखल न दो. हर संभव लोगों की मदद के लिए आगे बढ़ो, यही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए. 10 दिनों के पर्यूषण पर्व में दिगंबर साहब के इन्हीं आदर्शों और विचारों का पालन करते हुए जैन समाज पूजा अर्चना में लीन रहता है. जिसकी पूर्णाहुति क्षमा याचना के साथ होती है.

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