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कोरोना का कहर भी नहीं रोक पाया 113 साल पुरानी बंगाली समाज की परंपरा

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में पूर्वांचल का बंगाली समाज शहर की सबसे प्राचीन दुर्गा बाड़ी प्रतिमा की स्थापना लगातार 113वें वर्ष भी कर रहा है. इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दुर्गा बाड़ी पहुंचे और मां दुर्गा का आशीर्वाद लिया.

मां दुर्गा.
मां दुर्गा.

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Published : Oct 24, 2020, 7:36 PM IST

गोरखपुर: वैश्विक महामारी ने लगभग सभी धार्मिक अनुष्ठानों पर पाबंदी लगा दी है, लेकिन पूर्वांचल का बंगाली समाज इस साल शहर की सबसे प्राचीन दुर्गा बाड़ी प्रतिमा की स्थापना लगातार 113वें वर्ष में भी कर रहा है. शहर में राघव और शक्ति का मिलन भी दुर्गाबाड़ी की प्रतिमा के द्वारा ही किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहां से कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता.

जानकारी देते संवाददाता.

बड़ी संख्या में पहुंच रहे श्रद्धालु
पूर्वांचल की बंगाली समिति द्वारा 113 वर्षों से लगातार दुर्गा बाड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना बंगाली समाज के द्वारा की जाती है. शनिवार को रामनवमी के अवसर पर बड़ी संख्या में दूरदराज से आए श्रद्धालु दुर्गा बाड़ी पहुंचे. दुर्गा बाड़ी में स्थापित मां की प्रतिमा का भक्तों ने दर्शन किया. इस बार दुर्गा बाड़ी परिसर में न ही भव्य पंडाल बनाया गया है और न ही किसी प्रकार का कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. इन सबके बावजूद भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दुर्गाबाड़ी पहुंचकर मां की आराधना करने में जुटे हुए हैं. इस दौरान बंगाली समिति भी लगातार लोगों को वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के प्रति जागरूक कर रहा है.

मां दुर्गा.

बंगाली समाज दुर्गा बाड़ी में पिछले 113 वर्षों से लगातार मां की आराधना और पूजा करने में जुटा हुआ है. इस बार की पूजा कुछ विशेष रूप से की जा रही है. कोरोना रूपी राक्षस का पूर्ण विनाश करने के लिए भक्त मां से आराधना कर रहे हैं. बड़ी संख्या में दूरदराज से लोग यहां पर मां के दर्शन के लिए आते हैं और मां सभी की मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं.
मिनाली कांति चटर्जी, अध्यक्ष, बंगाली समाज

शहर की सबसे प्राचीन प्रतिमा की स्थापना बंगाली समाज दुर्गाबाड़ी में करता है. राघव और शक्ति का मिलन भी इसी माह प्रतिमा के द्वारा कराया जाता है. भगवान श्रीराम जब रावण का वध कर वापस लौटते हैं तो बसंतपुर चौराहे पर मां शक्ति और राघव का मिलन होता है. उसके बाद प्रतिमाओं का पूरे विधि-विधान के साथ विसर्जन किया जाता है. बंगाली समाज से जुड़े हुए बड़े दूर-दराज से यहां पर आते हैं और इस पूरे नवरात्र को एक पर्व के रूप में मनाते हैं.

डॉक्टर सत्या पाण्डेय, पूर्व महापौर

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