गोरखपुर :होली पर शहर में पहले लोग एक-दूसरे के ऊपर कीचड़, गोबर आदि डालते थे. अक्सर यह विवाद का कारण बन जाता था. करीब 7 दशक पहले तत्कालीन संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख ने इस प्रथा काे समाप्त कराया. उनके नेतृत्व में एक भव्य जुलूस निकलता था. इसमें काफी लोग शामिल होते थे. बाद में यह रंगोत्सव में बदल गया. कीचड़ आदि फेंकने वालाें काे रंग दिए गए. इसके बाद शहर में अबीर-गुलाल से हाेली खेलने का चलन शुरू हुआ.
नाना जी के प्रयास से गोरक्षपीठ भी बड़ी मजबूती से इस आयाेजन का हिस्सा बना. तब से जुलूस की अगुवाई तत्कालीन पीठाधीश्वर से लेकर से, वर्तमान गोरक्ष पीठाधीश्वर करते चले आ रहे हैं. इस बार भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बतौर गोरक्ष पीठाधीश्वर इसमें शामिल होंगे. होली के दिन निकलने वाला भव्य जुलूस बरसाना की तरह ही खास हाेता है. दशकों से होलिका दहन व होलिकोत्सव शोभायात्रा में गोरक्षपीठ की सहभागिता ने यहां के रंगपर्व को उत्तर प्रदेश के आकर्षण का केंद्र बना दिया है.
गोरक्षपीठाधीश्वर लेते हैं आयाेजन में हिस्सा :आरएसएस के गोरखपुर विभाग के सह संघ चालक आत्मा सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री बनने के बाद तमाम व्यस्तताओं के बावजूद बतौर गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ गोरखपुर की 2 महत्वपूर्ण शोभायात्राओं में सम्मिलित होते रहे हैं. गोरखपुर में भगवान नृसिंह रंगोत्सव शोभायात्रा की शुरुआत गोरखपुर प्रवासकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नाना जी देशमुख ने 1944 में की थी. गोरखनाथ मंदिर में होलिकादहन की राख से होली मनाने की परंपरा काफी पहले से जारी थी. नानाजी का यह अभियान होली पर फूहड़ता दूर करने के मकसद से चला था. नानाजी के अनुरोध पर इस शोभायात्रा का गोरक्षपीठ से भी गहरा नाता जुड़ गया.
ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के निर्देश पर महंत अवेद्यनाथ शोभायात्रा में पीठ का प्रतिनिधित्व करने लगे थे. यह गोरक्षपीठ की होली का अभिन्न अंग बन गया. 1996 से योगी आदित्यनाथ ने इसे अपनी अगुवाई में न केवल गोरखपुर बल्कि समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामाजिक समरसता का विशिष्ट पर्व बना दिया. अब इसकी ख्याति मथुरा-वृंदावन की होली सरीखी है. लोगों को योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाले भगवान नृसिंह शोभायात्रा का इंतजार रहता है. यह शाेभायात्रा 5 किमी लंबी है.