गोरखपुर: देश और दुनिया में प्रचलित सिक्कों के बारे में अगर आपके पास जानकारी है तो समझ लीजिए इतिहास की जानकारी से आप परिपूर्ण हैं. भारतीय इतिहास के बारे में बेहद ही रोचक जानकारी यहां पाए गए सिक्के हैं. ऐसे सिक्के संग्रहालयों में सुरक्षित किए गए हैं. इन संग्रहालयों में गोरखपुर का राजकीय बौद्ध संग्रहालय प्रमुख है. यहां सिक्कों की एक अनोखी छाया प्रदर्शनी तैयार की गई है, जो सिक्कों की प्रकृति, इतिहास, भूगोल के साथ-साथ राजा-महाराजाओं की मनोदशा और उनकी नीतियों को प्रदर्शित करते हैं. करीब 26 सौ साल पहले प्रयोग किए जाने वाले सिक्के बौद्ध संग्रहालय में मौजूद हैं. यहां समुद्रगुप्त और मुगल शासन काल के साथ सिकंदर के समय के भी सिक्कों की झलक मिल जाएगी.
माना जाता है कि देश में सिक्कों का चलन छठी शताब्दी ईसा पूर्व में शुरू हुआ था. उस समय सिक्कों को पुराण और पना भी कहा जाता था. भारत में जितने साम्राज्य हुए उतने ही अलग-अलग तरह के सिक्कों का आविष्कार हुआ. हर राजा के शासनकाल में उस राजा द्वारा अपने साम्राज्य की प्रतिष्ठा वाले सिक्के चलाए गए. कभी लोहा-तांबा तो कभी चांदी फिर सोना और स्टील के सिक्कों का सफर सिक्कों ने हजारों वर्षों में तय किया है. इन सिक्कों की कहानी और रूपरेखा को गोरखपुर के बौद्ध संग्रहालय में तैयार की गई. यहां के उपनिदेशक डॉ. मनोज कुमार की मानें तो सबसे पहले प्रचलन में आहत सिक्के आए, जिनका कोई निश्चित आकार नहीं था. आहत सिक्के कई तरह के संदेश देने में कामयाब होते हैं. प्रकृति प्रेम से लेकर फूल, पौधे और जानवरों के चित्र उस पर चोट देकर उकेरे गए हैं. इसीलिए उन्हें आहत सिक्के का नाम दिया गया है.