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Shardiya Navratri 2023: देश-विदेश में प्रसिद्ध तरकुलहा देवी मंदिर का अद्भुत है इतिहास, तरकुल के पेड़ से हुआ था रक्तश्राव - Shardiya Navratri

गोरखपुर के तरकुलहा देवी मंदिर (Tarkulha Devi Temple of Gorakhpur) में नवरात्रि में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. लोगों की यहां पर गहरी आस्था है. भक्तों का कहना है जो भी यहां आया है वह खाली नहीं गया है. लेकिन, तरकुलहा मंदिर का नाम देश की आजादी से जुड़ा हुआ है.

तरकुलहा देवी मंदिर
तरकुलहा देवी मंदिर

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 20, 2023, 7:22 PM IST

तरकुलहा देवी मंदिर में नवरात्रि में उमड़ती है भक्तों की भारी भीड़

गोरखपुर: शारदीय नवरात्र में देवी मां के मंदिरों में श्रद्धालुओं और भक्तों की भारी भीड़ दर्शन पूजन के लिए उमड़ती है. गोरखपुर में भी एक ऐसा ही मंदिर है जो तरकुलहा देवी के नाम से जाना जाता है. जहां पर दूर दराज से लोग दर्शन पूजन के लिए आते हैं. कहते हैं कि मां के दरबार में जो भी मुराद मांगी जाती है वो पूरी होती है. शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है. यही वजह है कि यहां नवरात्रि पर हर दिन भक्तों की आस्‍था का सैलाब उमड़ पड़ता है. अपनी श्रद्धा और मान्यता के साथ यह देवी मंदिर देश की आजादी का भी प्रमुख केंद्र रहा है. यह क्रांतिकारी गतिविधियों का क्षेत्र रहा है. योगी सरकार इसे शक्तिपीठ मानते हुए इसके विकास पर करोड़ों रुपए खर्च भी कर रही है.

तरकुलहा देवी मंदिर में नवरात्रि में उमड़ती है भक्तों की भीड़

क्रांतिकारी बाबू बंधु सिंह ने तरकुल के पेड़ के नीचे स्थापित की थी पिंडीःगौरतलब है कि क्रांतिकारी शहीद बाबू बंधु सिंह अंग्रेजों से बचने के लिए जंगल में रहने लगे थे. इसी दौरान बंधु सिंह ने घने जंगल में तरकुल के पेड़ के नीचे पिंडी रूप स्‍थापित कर पूजा शुरू की थी. यहीं से उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाया था. क्रांतिकारी बाबू बंधु सिंह ने इस मंदिर पर गुरिल्ला युद्ध कर कई अंग्रेज अफसरों की बलि दी थी. यही से अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू किया था. लेकिन, अंग्रेजों ने बाद में क्रांतिकारी बंधु सिंह को फांसी दे दी थी. फांसी के दौरान यह तरकुल का पेड़ टूट गया था, जिसमें से रक्तस्राव हुआ था. तभी से पेड़ के नीचे स्थापित पिंडी को तरकुलहा देवी नाम से पुकारने जाना लगा. यह लोगों की आस्था और भक्ति का अटूट केंद्र बन गया है.

भारी संख्या में भक्त पहुंचते हैं दर्शन करने


शहीद बंधु सिंह की फांसी का फंदा सात बार टूटा थाःगोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर राजवंत राव बताते है कि क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन का शहीद बंधु सिंह ने अनूठा उदाहरण पेश किया था. वह धोखेबाज लोगों की वजह से पकड़े गए थे, नहीं तो अंग्रेज उन्हे पकड़ने में कभी कामयाब नहीं होते. उनकी फांसी का फंदा सात बार टूटा था. जब खुद बंधु सिंह में देवी मां भगवती से विनती की, तब अंग्रेज उन्हे फांसी लगा पाए थे. जंगल का वह साधना स्थल जहां पर बंधु सिंह मां की साधना करते थे. वहां पर स्थापित तरकुल का पेड़ टूट कर गिर गया था और उसमें से रक्तस्त्राव होने लगा था.

मंदिर के जीर्णोद्धार पर सरकार ने खर्च किए ढाई करोड़ःवहीं, पिंडी रूप आज भव्य तरकुलहा देवी मंदिर के रूप में दिखाई देता है. तबसे इस मंदिर पर लोगों की आस्था जुड़ गई और श्रद्धालुओं की भीड़ माता रानी के दरबार में जुटने लगी. वर्तमान में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ और भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र बन गया है. मां दुर्गा का आशीर्वाद भक्‍तों को हमेशा से मिल रहा है. शहीद बंधु सिंह के योगदान की वजह से मंदिर पर लोगों की आस्‍था बढ़ती चली जा रही है. योगी सरकार इसके निर्माण पर अब तक करीब ढाई करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है.


हर मुराद होती है पूरीःवहीं, श्रद्धालु द‍िनेश कहते हैं कि वे कई बरसों से तरकुलहा माता मंदिर में दर्शन करने के लिए आ रहे हैं. उनकी मां में बहुत आस्था है. यहां पर जो भी मुराद श्रद्धालु माता से मांगते हैं, वो उसे पूरा करती हैं. श्रद्धालु रमेश जायसवाल बताते हैं कि ये ऐतिहासिक मंदिर है. 1857 की क्रांति के बाद क्रांतिकारी बाबू बंधु सिंह यहां पर पूजा-अर्चना करते थे. यह मंदिर देश और विदेश में काफी प्रसिद्ध है. शारदीय और चैत्र नवरात्रि पर यहां भक्‍तों की भीड़ उमड़ पड़ती है. भक्तों की भीड़ देखर आस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है. वहीं, श्रद्धालु बालमुकुंद कहते हैं कि जो भी यहां आया खाली हाथ नहीं लौटा, चाहे सुख में या दुख में. जिसने जो मांगा मां के दरबार से वह निराश नहीं हुआ. तरकुलहा माता सबकी आस्था का बड़ा केंद्र हैं. पुजारी रमेश त्रिपाठी कहते हैं कि मां अपने भक्तों पर पूरी कृपा बरसाती हैं.

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