गोरखपुर: शारदीय नवरात्र में देवी मां के मंदिरों में श्रद्धालुओं और भक्तों की भारी भीड़ दर्शन पूजन के लिए उमड़ती है. गोरखपुर में भी एक ऐसा ही मंदिर है जो तरकुलहा देवी के नाम से जाना जाता है. जहां पर दूर दराज से लोग दर्शन पूजन के लिए आते हैं. कहते हैं कि मां के दरबार में जो भी मुराद मांगी जाती है वो पूरी होती है. शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है. यही वजह है कि यहां नवरात्रि पर हर दिन भक्तों की आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है. अपनी श्रद्धा और मान्यता के साथ यह देवी मंदिर देश की आजादी का भी प्रमुख केंद्र रहा है. यह क्रांतिकारी गतिविधियों का क्षेत्र रहा है. योगी सरकार इसे शक्तिपीठ मानते हुए इसके विकास पर करोड़ों रुपए खर्च भी कर रही है.
क्रांतिकारी बाबू बंधु सिंह ने तरकुल के पेड़ के नीचे स्थापित की थी पिंडीःगौरतलब है कि क्रांतिकारी शहीद बाबू बंधु सिंह अंग्रेजों से बचने के लिए जंगल में रहने लगे थे. इसी दौरान बंधु सिंह ने घने जंगल में तरकुल के पेड़ के नीचे पिंडी रूप स्थापित कर पूजा शुरू की थी. यहीं से उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाया था. क्रांतिकारी बाबू बंधु सिंह ने इस मंदिर पर गुरिल्ला युद्ध कर कई अंग्रेज अफसरों की बलि दी थी. यही से अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू किया था. लेकिन, अंग्रेजों ने बाद में क्रांतिकारी बंधु सिंह को फांसी दे दी थी. फांसी के दौरान यह तरकुल का पेड़ टूट गया था, जिसमें से रक्तस्राव हुआ था. तभी से पेड़ के नीचे स्थापित पिंडी को तरकुलहा देवी नाम से पुकारने जाना लगा. यह लोगों की आस्था और भक्ति का अटूट केंद्र बन गया है.
शहीद बंधु सिंह की फांसी का फंदा सात बार टूटा थाःगोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर राजवंत राव बताते है कि क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन का शहीद बंधु सिंह ने अनूठा उदाहरण पेश किया था. वह धोखेबाज लोगों की वजह से पकड़े गए थे, नहीं तो अंग्रेज उन्हे पकड़ने में कभी कामयाब नहीं होते. उनकी फांसी का फंदा सात बार टूटा था. जब खुद बंधु सिंह में देवी मां भगवती से विनती की, तब अंग्रेज उन्हे फांसी लगा पाए थे. जंगल का वह साधना स्थल जहां पर बंधु सिंह मां की साधना करते थे. वहां पर स्थापित तरकुल का पेड़ टूट कर गिर गया था और उसमें से रक्तस्त्राव होने लगा था.