गोरखपुर: रक्षाबंधन का पर्व जैसे-जैसे करीब आ रहा है. भाइयों की कलाई पर बांधी जाने वाली राखियों से बाजार भी सजने लगा है. लेकिन, सिंथेटिक और चाइनीज राखियों के अलावा इस बार बाजार में बांस यानी कि बंबू से बनी रखियां भी आने जा रही हैं. इनसे से बाजार में स्पर्धा का दौर बढ़ जाएगा. भारत सरकार के बंबू मिशन के तहत ये राखियां गोरखपुर में बनाई गई हैं. इसमें वन विभाग के सहयोग से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने प्रशिक्षण और खुद के हुनर से ऐसी आकृतियां बनाई हैं, जो देखने के साथ ही आपके मन को मोहित कर लेंगी. कठिन परिश्रम और साधना से ग्रामीण परिवेश की महिलाओं ने इन राखियों को जिस तरह से तैयार किया है, वह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी के वोकल फॉर लोकल के मंत्र को सिद्ध करने में भी सफल दिखाई दे रहा है.
नेशनल बंबू मिशन के तहत कैंपियरगंज तहसील के लक्ष्मीपुर में स्थापित सामान्य सुविधा केंद्र जिसे सीएससी कहते हैं. यहीं पर यह राखियां तैयार की जा रही हैं. जहां कच्चे माल के रूप में गोरखपुर और उपयोग में आने वाले बाहरी बांस को भी मंगाया जाता है. बांस से यह महिलाएं कई तरह के और भी सामान बनाती हैं. इसका इन्हें प्रशिक्षण प्राप्त है. लेकिन, राखियों को बनाने का बिना कोई खास प्रशिक्षण लिए सिर्फ मन में उत्साह और अपने हुनर पर भरोसा करने की वजह से इन महिलाओं ने मोबाइल से राखियों की डिजाइन को देखकर उससे बेहतर अपने हाथों से कलाकृतियों को बनाया है. इस कला को देखकर वन विभाग के अधिकारी सहित सभी लोग हैरान रह गए. रक्षाबंधन के अवसर पर तैयार की गई इन राखियों को वन विभाग गोरखपुर के चिड़ियाघर समेत ऐसे सार्वजनिक स्थलों पर स्टॉल के माध्यम से बिक्री करने का प्रयास कर रहा है, जहां अधिक संख्या में ब्लॉक में आना-जाना होता है.
बांस से बनीं राखियों के बारे में जानकारी देते कारीगर और डीएफओ विकास यादव. इसे भी पढ़े-रक्षाबंधन 2022: इस साल भाइयों की कलाइयों पर सजेंगी टेराकोटा की राखियां, जानिए इसकी खासियत
आगामी 29 जुलाई को राष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर लगने वाली प्रदर्शनी में भी इसे प्रस्तुत कर गोरखपुर के साथ प्रदेश और देश में इसकी पहचान को कायम करने का प्रयास विभाग करेगा. गोरखपुर के डीएफओ विकास यादव ने ईटीवी भारत को बताया कि महिलाओं को उनके हुनर का सम्मान और पहचान मिले. इसके साथ ही उनके उत्पाद की उचित कीमत भी उन्हें दी जाए, इसका प्रयास जारी है. भविष्य में इसे और बेहतर कैसे किया जाए, इसकी कोशिश और कल्पना आज से ही की जाने लगी है. राखियां बनाने वाली महिलाओं ने कहा कि यह बहुत ही मेहनत का काम है. लेकिन, इसे बनाने के साथ ही वे बेहद खुश भी हैं. उन्हें उम्मीद है कि उनकी मेहनत को पहचान और कीमत भी मिलेगी.
यह सभी महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई हैं. लेकिन, वन विभाग की निगरानी इन पर बनी रहती है. संसाधन और स्थान की उपलब्धता वन विभाग ही इन्हें देता है. समूह की बिंदु देवी, राजमती, झिनकी, मीना, मीरा, शीला और संजू इस काम में इतनी पारंगत हो गई हैं कि मोबाइल की कोई भी डिजाइन यह मिनट भर में समझती हैं और इनकी अंगुलियां आपस में एक-दूसरे को सहयोग करती हुई अद्भुत कलाकृति को जन्म देती हैं.
महिलाओं के उत्साह को देखते हुए रक्षाबंधन के पहले तक लगभग एक लाख रुपये कीमत की राखियों को बिक्री के लिए उपलब्ध कराने की विभाग की तैयारी है. इसे शहर समेत राजधानी लखनऊ तक भी विभिन्न स्टॉलों पर पहुंचाया जाएगा. इससे बाजार में अब तक मिलती चली आ रही राखियों के मजबूत और सुंदर विकल्प के रूप में बांस की राखियां स्थापित हो सकें.
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