गोरखपुर: साहित्यिक किताबों और पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकों से गुलजार रहने वाली गोरखपुर नगर निगम की लाइब्रेरी मौजूदा समय में अपनी जर्जर स्थिति और पाठकों की बेरुखी का शिकार होती दिखाई दे रही है. लाइब्रेरी के प्रति शासन की बेरुखी और निगम प्रशासन की लापरवाही के चलते आजाद भारत की दुखदाई तस्वीर दिखाई पड़ रही है.
आजादी से पहलेस्थापित की गई थीलाइब्रेरी
अंग्रेजी शासनकाल में सन 1925 में इस लाइब्रेरी को 'आमनो-अमन' के नाम से स्थापित किया गया था. जिस बिल्डिंग में यह लाइब्रेरी संचालित हो रही है, वह मौजूदा समय में एक ऐतिहासिक धरोहर बन चुकी है. एक समय इस लाइब्रेरी में करीब 15 हजार किताबें हुआ करती थी, जिसका पाठकगण अपनी जरूरत के हिसाब से उपयोग करते थे. देश की आजादी के बाद इसका नाम 'राहुल सांकृत्यायन' के नाम से हो गया, लेकिन उनके कद के अनुरूप इसकी दशा नहीं सुधारी गई.
आलमारी में ही बंद रहती हैं किताबें
मौजूदा समय में इस लाइब्रेरी की किताबें अलमारी में बंद हैं. जो पाठक यहां आते हैं, उन्हें पढ़ने के लिए दो-चार अखबार ही मिलते हैं. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र भी अपनी किताबों के साथ यहां तैयारी करते देखे जा सकते हैं. वह इसलिए आते हैं, क्योंकि उन्हें यहां शांत माहौल मिलता है. कुछ पढ़ने-लिखने वाले लोग यहां मिल जाते हैं, जिससे उनका हौसला बढ़ता है.
लाइब्रेरी ने दिलाई नौकरी
कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जिन्होंने छात्र जीवन से इसका लाभ उठाया. नौकरी भी पाई और अब रिटायरमेंट होने के बाद फिर यहां से जुड़कर किताबों का अध्ययन करते हैं, लेकिन मौजूदा दौर की व्यवस्था को देखकर वह बेहद आहत हैं. उनका कहना है कि न तो अब पहले जैसे अखबार और किताबें यहां पढ़ने को मिल रहे हैं और न ही व्यवस्था सुधरी दिखाई दे रही है.