गोरखपुर: थैलेसीमिया एक जानलेवा बीमारी मानी जाती है. अगर इसकी पहचान और इलाज समय से न हो, तो यह रोगी की जान ले सकती है. यह अनुवांशिक बीमारी मानी जाती है. इसकी चपेट में आने वाले मासूम जहां जिंदगी के लिए जंग लड़ते हैं, वहीं थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित "स्निग्धा चटर्जी" ने पढ़ाई के उच्च शिखर को छूने के साथ ही प्रदेश की पहली नेट क्वालीफाई करने वाली थैलेसीमिया मरीज बन गई हैं. वह इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को बचाने के लिए एक बड़े अभियान के लिए निकल पड़ी हैं. जिसके लिए सीएम योगी आदित्यनाथ उन्हें विभिन्न मंचों से सम्मानित कर चुके हैं.
आठ मई को पूरी दुनिया विश्व थैलेसीमिया दिवस के रूप में मनाती है. इस दिन ईटीवी भारत से बात करते हुए थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित स्निग्धा चटर्जी ने बताया कि वह मात्र 3 माह की अवस्था से ही इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं. मौजूदा समय में वह 26 साल की हैं. आज से 26 साल पहले तक इस बीमारी का इलाज गोरखपुर जैसी जगह पर उनके अभिभावकों के लिए बहुत कठिन कार्य था. समय और संसाधन के अभाव में उनके अभिभावक और उसने खुद बड़ी हिम्मत से इस बीमारी को न सिर्फ मात दी, बल्कि अब थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित मरीज नहीं, वह एक योद्धा के रूप में अपने आपको खड़ी कर चुकी हैं.
गोरखपुर क्षेत्र में 150 से ज्यादा थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित मरीज हैं. जिनको वह अपने से जोड़कर मदद पहुंचाने में जुट गई हैं. स्निग्धा चटर्जी ने बताया कि इस बीमारी से जूझने वाले छोटे-छोटे बच्चों को देखकर बहुत ही दर्द होता है. इसी दर्द से उबारने के लिए वह सरकार और समाज के जागरूक लोगों के साथ जुड़कर इसकी मुख्य समस्या को खत्म करने के प्रयास को आरंभ कर चुकी हैं.
उन्होंने बताया कि सिर्फ रक्त चढ़ा देने से थैलेसीमिया का मरीज ठीक नहीं हो जाता है. इसके साथ ही वह आयरन के ओवरलोड होने जैसी खतरनाक समस्या का भी शिकार हो सकता है. जो मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो जाएगा. उन्होंने बताया कि थैलेसीमिया मरीज के शरीर में आयरन की मात्रा एक हजार से कम होनी चाहिए. यह पेशंट में रक्त चढ़ाने के बाद जांच किए जाने की जरूरत है. हर 3 माह में इसकी जांच होनी चाहिए. नहीं तो आयरन के ओवरडोज होने से शरीर में अन्य समस्यायें होने लगती हैं. साथ ही शरीर के जरूरी अंग निष्क्रिय होने लगते हैं.