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आर्सेनिक और टॉक्सी कैमिकल बीमारी के जड़, खून और पानी के नमूने से AIIMS निकालेगा इलाज का तरीका - इंसेफेलाइटिस और एईएस की बीमारियां

इंसेफेलाइटिस और एईएस (Encephalitis and AES diseases) जैसी बीमारियों को दूर करने के लिए गोरखपुर एम्स 'स्वस्थ पूर्वी उत्तर प्रदेश' नाम का अभियान शुरू करेगा. इस अभियान के जरिए वह पानी और ब्लड सैंपल जुटाएगा और इस लैब में शोध कराकर मरीजों को बीमारियों से निजात दिलाने का प्रयास किया जाएगा.

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गोरखपुर एम्स की ओपीडी-गंदे पानी की फोटो

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Published : Jun 3, 2022, 3:33 PM IST

गोरखपुर: मेडिकल साइंस से यह बात निकलकर सामने आई है कि पानी और उसमें पाए जाने वाले तत्वों की वजह से कई तरह की बीमारियां जन्म लेती हैं. पूर्वांचल, खासकर गोरखपुर इसका बड़ा क्षेत्र रहा है, जो इंसेफेलाइटिस और एईएस जैसी बीमारियों से जूझता रहा है. इन बीमारियों को दूर करने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स, गोरखपुर) ने एक अभियान शुरू किया है, जिसका नाम है- 'स्वस्थ पूर्वी उत्तर प्रदेश'.

इसके संबंध में एम्स की कार्यकारी निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर (AIIMS Executive Director Dr. Surekha Kishore) ने ईटीवी भारत को जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि पानी में पाए जाने वाले आर्सेनिक और टॉक्सी केमिकल की वजह से कई तरह की बीमारियां उत्पन्न होती हैं. यही वजह है कि एम्स विभिन्न क्षेत्र से पानी और ब्लड सैंपल जुटा रहा है. इसे एकत्रित करके लैब में शोध के लिए लाया जाएगा और जो परिणाम निकलकर सामने आएगा, उसके आधार पर मरीजों को बीमारियों से निजात दिलाने का काम किया जाएगा. उन्होंने कहा कि यह शोध काफी खर्चीला है और जांच पर करीब ₹6 हजार का खर्च आता है, इसलिए एम्स राज्य सरकार से इस शोध में मदद की गुहार भी लगा रहा है.

गोरखपुर एम्स की ओपीडी

उन्होंने कहा कि सरकार का सहयोग मिला तो बड़े पैमाने पर पानी और खून के नमूने लेकर जांच की जाएगी. दोनों में आर्सेनिक का स्तर पता कर बीमारियों का कारण तलाशा जाएगा. साथ ही यह भी देखा जाएगा कि यहां के लोगों की ज्यादातर बीमारियों का कारण आर्सेनिक ही तो नहीं है. फिलहाल विभिन्न क्षेत्रों से डेढ़-डेढ़ सौ ब्लड और पानी के नमूने लिए जाएंगे, जिन नमूनों में आर्सेनिक का मानक (.10 माइक्रोग्राम) प्रति लीटर से ज्यादा होगा, उनकी थेरेपी कराई जाएगी और बचाव के उपाय बताए जाएंगे.

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सूत्रों की मानें तो कुछ वर्ष पहले गोरखपुर का मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भी पानी में आर्सेनिक की मात्रा की जांच में जुटा था और एकत्रित नमूनों में 36% आर्सेनिक और 27% नमूनों में फ्लोराइड की मात्रा मिली थी. यही वजह है कि एम्स बीमारियों की तह में जाने के लिए इन बिंदुओं पर काम करने जा रहा है.

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