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गीता प्रेस ने अब तक नहीं लिया कोई अवार्ड, गांधी शांति पुरस्कार पर निर्णय लेगा ट्रस्ट बोर्ड

गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. इसके बाद से गीता प्रेस सुर्खियों में है. गीता प्रेस का अपना अलग इतिहास रहा है.

गीता प्रेस का इतिहास.
गीता प्रेस का इतिहास.

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Published : Jun 19, 2023, 4:59 PM IST

Updated : Jun 19, 2023, 5:06 PM IST

गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है

गोरखपुर :सनातन धर्म को आगे बढ़ाने और धार्मिक पुस्तकों की छपाई के लिए विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. इस पर गीता प्रेस प्रबंधन ने खुशी जताई है. गीता प्रेस से जुड़े लोग बताते हैं कि कई ऐसे मौके आए जब गीता प्रेस को पुरस्कार देने की बात कही गई, लेकिन आज तक गीता प्रेस ने कभी कोई पुरस्कार नहीं लिया है. गांधी शांति पुरस्कार को स्वीकारने का निर्णय ट्रस्ट बोर्ड को लेना है.

गीता प्रेस प्रबंधन के उत्पाद प्रबंधक लालमणि तिवारी ने कहा है कि समाज और लोगों के साथ-साथ सरकार के बीच भी गीता प्रेस के कार्यों की स्वीकार्यता बढ़ी है. यह पुरस्कार इस बात को दर्शाता है, लेकिन गीता प्रेस को कई बार पुरस्कार और धनराशि देने के अवसर आए, लेकिन प्रबंधन ने उसे कभी स्वीकार नहीं किया. यहां तक कि जब इसके संस्थापक भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को 'भारत रत्न' दिए जाने की घोषणा हुई थी तो, उन्होंने बड़ी ही सहजता और विनम्रता के साथ उसे अस्वीकार कर दिया था.

गीता प्रेस का इतिहास.

उत्पाद प्रबंधक ने बताया कि अब जब गांधी शांति पुरस्कार समाज हित में गीता प्रेस को दिए जाने की घोषणा की गई है तो इस पुरस्कार को स्वीकार करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो सम्मान दिया है, उसको कैसे कायम रखा जाए, इसका अंतिम फैसला गीता प्रेस ट्रस्ट बोर्ड ही लेगा.

1923 में हुई थी गीता प्रेस की स्थापना : उत्पाद प्रबंधक ने कहा कि 1923 में स्थापित गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है. 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की गईं हैं. 16.21 करोड़ श्रीमद्भगवद्गीता शामिल हैं. संस्था ने राजस्व सृजन के लिए कभी भी अपने प्रकाशनों में विज्ञापन पर भरोसा नहीं किया है. गीता प्रेस अपने संबद्ध संगठनों के साथ, जीवन की बेहतरी और सभी की भलाई के लिए प्रयासरत है. यही सब देखते हुए गांधी शांति पुरस्कार 2021 की घोषणा की गई है. यह गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है. यही सच्चे अर्थों में गांधीवादी जीवन का प्रतीक है. गीता प्रेस की स्थापना के सौ साल पूरे होने पर इस पुरस्कार का ऐलान किया गया है. यह संस्थान द्वारा सामुदायिक सेवा में किए गए कार्यों की मान्यता है.

एक करोड़ रुपये भी मिलते हैं :महात्मा गांधी द्वारा प्रतिपादित आदर्शों को श्रद्धांजलि के रूप में 1995 में भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए इस वार्षिक पुरस्कार में, एक करोड़ रुपए की पुरस्कार राशि के साथ एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला / हथकरघा वस्तु प्रदान की जाती है. पूर्व में यह पुरस्कार इसरो, रामकृष्ण मिशन, बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक, विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी, अक्षय पात्र, बेंगलुरु, एकल अभियान ट्रस्ट, भारत और सुलभ इंटरनेशनल, नई दिल्ली जैसे संगठन को दिए गए थे. वहीं दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. नेल्सन मंडेला, तंजानिया के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जूलियस न्येरेरे, सर्वोदय श्रमदान आंदोलन श्रीलंका के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. एटी अरियारत्ने, जर्मनी संघीय गणराज्य के डॉ. गेरहार्ड फिशर, बाबा आमटे, डॉ. जॉन ह्यूम, चेकोस्लोवाकिया के पूर्व राष्ट्रपति वाक्लेव हवेल, दक्षिण अफ्रीका के आर्कबिशप डेसमंड टूटू, चंडी प्रसाद भट्ट और जापान के योही ससाकावा को प्रदान किया जा चुका है. हाल के पुरस्कार विजेताओं में सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद, ओमान (2019) और बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (2020) बांग्लादेश शामिल हैं.

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Last Updated : Jun 19, 2023, 5:06 PM IST

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