गोरखपुरः प्रधानमंत्री लगातार किसानों की आय दोगुनी करने की बात कहते हैं. ऐसे में किसान भी अब मुनाफे की खेती कर अपनी आय को दोगुनी करने के साथ ही अन्य लोगों को जोड़ते हुए उन्हें भी रोजगार की मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं. कुछ ऐसा ही किया है गोरखपुर के किसान धर्मेंद्र सिंह ने, जिन्होंने अपनी पारंपरिक खेती छोड़कर पूर्वांचल में पहली बार स्ट्राबेरी की खेती कर अपनी आय को दोगुनी की है.
गोरखपुर में स्ट्राबेरी की खेती. 15 लोगों को दिया रोजगार
पिपराइच विकासखंड के उनौला दोयम के प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र सिंह ने दो बीघे जमीन में स्ट्रॉबेरी की खेती की है. वह खेत में ही फल की पैकिंग करते हैं और शहर में पहुंचा देते हैं. स्ट्रॉबेरी दो सौ से ढाई सौ रुपये प्रति किलो की दर से दुकानदार हाथों-हाथ खरीदार खरीद भी लेते हैं. धर्मेंद्र सिंह सितंबर से लेकर अब तक करीब 6 लाख रुपये खेती पर खर्च कर चुके हैं. उन्हें उम्मीद है कि अप्रैल तक वह स्ट्राबेरी बेचकर लगभग 15 लाख रुपये कमा लेंगे. मुनाफे की इस खेती से उन्होंने 15 श्रमिकों को रोजगार भी दिया है. साथ ही अन्य किसानों को स्ट्राबेरी की खेती के प्रति प्रोत्साहित भी करते हैं. स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अपने पुश्तैनी कार्य को ही करना उचित समझा, लेकिन पारंपरिक खेती से केवल दो जून की रोटी है, मयस्सर हो पा रही थी. इसके बाद उन्होंने आधुनिक खेती को अपनाया.
ऑनलाइन भी बेच रहे स्ट्राबेरी
उद्यान विभाग की प्रेरणा से पिछले वर्ष किसान धर्मेंद्र सिंह ने स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की शुरुआत छोटे स्तर पर थी. कोरोना काल में भी उन्हें यह खेती फायदे का सौदा लगी तो इस बार उन्होंने पुणे से स्ट्राबेरी के 35000 पौधे लाकर दो बीघा जमीन में लगाए. एक पौधा खेत तक आने में लगभग 18 रुपये की लागत आई. एक पौधे में 600 से 800 ग्राम स्ट्रॉबेरी की पैदावार होती है. स्ट्रॉबेरी की डिमांड अब ऑनलाइन के माध्यम से भी हो रही है, जिसकी पूर्ति धर्मेंद्र सिंह कर रहे हैं.
30 बीघा जमीन किराए पर लेकर कर रहे खेती
प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि खेती से भी उद्योगों की तरह मुनाफा कमाया जा सकता है, बशर्ते बाजार की जरूरतों के मुताबिक फसलें तैयार की जाए. उन्होंने बताया कि पिछले 14 साल से खेती कर रहे हैं, खुद की ज्यादा जमीन नहीं है. ऐसे में उन्होंने 30 बीघा जमीन किराए पर ली और प्रति बीघा 7 हजार रुपये खेत का किराया देते हैं. इस जमीन में केले और सब्जियों की खेती करते रहे हैं.
विशेषज्ञों की सलाह लेकर शुरू की खेती
धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि विशेषज्ञों की सलाह पर प्लास्टिक मिलचिंग का इस्तेमाल कर स्ट्रॉबेरी के लिए खेत तैयार किया. ड्रिप इरीगेशन अपनाई, जिसके लिए उन्हें अनुदान भी मिला. मिट्टी का बेड बनाने के दौरान ही ड्रिप इरिगेशन की पाइप लाइन को लगाया. इससे खेत में बेड बनाकर जमीन को चारों तरफ से प्लास्टिक की पारदर्शी फिल्म के द्वारा सही तरीके से ढका गया. इसके बाद प्लास्टिक में छेद कर पौधे लगाए गए. इस विधि से खरपतवार नियंत्रण के साथ भूमि का तापमान भी नियंत्रित करने में मदद मिली. इस तकनीक से खेत में पानी की नमी को बनाए रखने और वाष्पीकरण को रोका जाता है. यह तकनीक खेत में मिट्टी के कटाव को भी रोकती है.
दूर-दराज से किसान आते हैं खेती देखने
धर्मेंद्र बताते हैं कि सितंबर में स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए, अब उपज मिलने लगी है. रोज औसतन 1 क्विंटल स्ट्रॉबेरी का उत्पादन हो रहा है. उन्होंने बताया कि अभी तक स्ट्रॉबेरी की खेती पर उन्होंने लगभग 6 लाख रुपया लगाया है. उन्हें उम्मीद है कि अप्रैल के पहले सप्ताह तक 15 से 16 लाख रुपये की उपज आसानी से मिल जाएगी. स्ट्राबेरी की खेती को देखने और समझने के लिए दूरदराज से किसान भी आते हैं.
शहर में ही बिक जाती है स्ट्राबेरी
सहयोगी राजनाथ सिंह बताते हैं कि पिछले कई वर्षों से वह पारंपरिक खेती कर अपना गुजर-बसर कर रहे थे, लेकिन प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र सिंह के साथ मिलकर उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की और अपने साथ 15 लोगों को जोड़कर प्रतिदिन एक कुंटल स्ट्रॉबेरी के फल को बाजार में भेजने का काम कर रहे हैं. यह सारा फल शहर में ही खपत हो जा रहा है.