उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

गोरखपुरः कल मनाया जाएगा यौम-ए-पैदाइश का पर्व ईद मिलादुन्नबी

यूपी के गोरखपुर में महान सूफी संत पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का यौम-ए-पैदाईश रविवार को जश्न ए ईद मिलादुन्नबी मनाया जाएगा. जिसको लेकर तैयारियां जोरों पर चल रही हैं.

जानकारी देते मुस्लिम धर्मगुरु.

By

Published : Nov 9, 2019, 12:09 PM IST

गोरखपुरःमुस्लिम समुदाय के आदर्श पैगम्बर-ए-आजम मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यौम-ए-पैदाइश का पर्व ईद मिलादुन्नबी रविवार को मनाया जाएगा. 29 अक्टूबर मंगलवार के दिन शाम को चांद की पुष्टि होने पर तैयारियां शुरू हो गई हैं. आगामी 10 नवंबर रविवार की सुबह नमाज-ए-फज्र परचम कुशाई (ध्वजारोहण) के उपरांत धार्मिक स्थानों से जुलूस निकाला जाएगा.

जानकारी देते मुस्लिम धर्मगुरु.


ईद मिलादुन्नबी की तैयारियां शुरू
मदरसा आदि सभी धार्मिक स्थलों पर सफाई, हरी झंडी लगाने से लेकर रोशनी का खासा इंतजाम किया जा रहा है. लोग अपने घरों में सफाई तथा त्योहार से संबंधित खरीदारी करने में जुटे हुए हैं. अरबी तारीख के मुताबिक नबीयों के सरदार मोहम्मद की यौम-ए-पैदाइश मुस्लिम समुदाय के लोग अमनो अमान से जश्न ए ईद मिलादुन्नबी के रूप में मनाते हैं. क्षेत्र में करीब सभी गांव में जुलूस-ए-मोहम्मदी निकाला जाएगा. समुदाय के लोग अपने घर, मस्जिद में कुर्आनखानी, फातेहाखानी आदि आयोजित किया जाएगा.

मोहम्मद साहब का कब और कहां हुआ जन्म
दारुल उलूम अहले सुन्नत अनवारुल के मौलाना आस मोहम्मद का कहना है कि मुस्लिम समुदाय के महान सूफी संत हजरत मोहम्मद (स.अ.) की पैदाइश करीब 14,500 वर्ष पहले हुई थी. सूफी संत हजरत मोहम्मद का जन्म सऊदी अरब के मक्का नामक शहर में अहल-ए-कुरैश कबीले के सरदार अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब के घर 20 अप्रैल 571 इस्वी में हुआ था. उनके माता का नाम हजरत आमीना था.

इसे भी पढ़ें:- लखनऊः मंगलवार को मनाया जाएगा शिया समुदाय द्वारा ईद-ए-ग़दीर का पर्व

53 वर्ष की आयु में वह मक्का शरीफ को छोड़कर मदीना शरीफ चले गए. वहां 63 वर्ष की आयु में उनका 12 जून 662 इस्वी में संसार से परदा (अदृश्य) हो गए. तभी से सम्पूर्ण संसार में निवास करने वाले इस्लाम धर्म के लोग उन को अपना आदर्श और रहनुमा मानते हैं. उनकी याद में उनका जन्मदिन ईद मिलादुन्नबी के रूप में हर वर्ष मनाते हैं. मोहम्मद साहब ने इस्लाम का व्यापक रूप से विस्तार किया. इसके लिए उनको बेशुमार परेशानियों का सामना और कड़ी मशक्कत करना पड़ा.


मोहम्मद साहब का जन्म बुराई को दूर करने के लिए हुआ
मौलाना ने बताया कि जिस समय मुस्तफा-जान-ए-रहमत दुनिया में तशरीफ लाए, उस समय मक्का के हालात बद से बदतर था. बाप अपने बच्चियों को जिंदा जमीन में दफ्न कर देता था. विधवाओं से बदसलूकी होती थी. छोटी-छोटी बात के लिए वहां के लोग आपस में भिड़ जाया करते थे. अरब का समाज कबीलों में बंटा था. ऐसे समय में इंसानों की रहनुमाई के लिए इस्लामी तारीख 12 रबीउल अव्वल को मोहम्मद साहब का जन्म हुआ. उन्होंने दुनिया भर से तमाम बुराईयों का खात्मा किया. पूरी दुनिया को इस्लाम का पैगाम दिया. जिन्दगी जीने का सलीका बताया.


पैदाईश से पहले उनके पिता का हो चुका था स्वर्गवास
बताया जाता है कि पैदाइश से दो माह पहले उनके पिता अब्दुल्ला का स्वर्गवास हो गया. उनका लालन पालन चाचा अबु तालिब ने बड़े ही लाड प्यार से किया. दाई हलिमा ने उनको पाला पोशा. मोहम्मद साहब बचपन से ही अल्लाह की इबादत में लीन रहे. उन्होंने सभी इंसान को अल्लाह का बंदा बताया, लेकिन अल्लाह का पसंदीदा और करीबी बंदा उसको बताया जो ईमान वाला और परहेजगार है.

इसे भी पढ़ें:- चित्रकूट में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई ईद उल अजहा की नमाज

अल्लाह ने मोहम्मद साहब को सारी दुनिया का रहमत बना कर भेजा

लोगों का कहना है कि अल्लाह ने मुस्तफा जान ए रहमत को पूरी दुनिया के लिए रहमत और रहनुमा बनाकर भेजा. उन्होंने मक्का से हिजरत करने के बाद मदीना शरीफ में रहना पसंद किया. इतनी परेशानियों के बाद भी अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा और अल्लाह के पैगाम को एखलाक और मोहब्बत से पूरी दुनिया में पहुंचाया. गरीब मजदूर बेसहारों को सहारा दिया. उन्होंने पहली शादी विधवा खदीजा से किया. बेटीयों को समाज में जीनत का दर्जा दिया. समाज में फैल रही बुराइयों को दूर किया. बता दें कि मुस्लिम धर्म की पाक ग्रंथ कुर्आन-ए-पाक भी उन्हीं के जीवन के ऊपर लिखा है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details