गोरखपुर: पूरे देश में गणपति बप्पा की धूम चल रही है. गोरखपुर भी इस धूम से अछूता नहीं है. शहर में हर तरफ गणपति बप्पा मोरिया के जयकारे सुनाई दे रहे हैं. पूरा शहर भगवान गणेश की जय-जयकार से गुंजायमान है. वहीं गणपति बैठाने वाली समितियों ने भी पर्यावरण का विशेष ध्यान रखते हुए गणपति बप्पा की मूर्ती को बनवाया है.
यहां बासमती चावल से बनते हैं गणेश. गोरखपुर के किराना मंडी में पिछले कई वर्षों से इको फ्रेंडली गणपति की मूर्ति की स्थापना समिति द्वारा की जाती है. यह मूर्ति पानी में पूरी तरह घुल जाती है, जिससे जलीय जीव जंतुओं को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है. साथ ही पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है. इसी उद्देश्य से समिति मूर्तियों का निर्माण कराती आ रही है.
उच्च गुणवत्ता वाले चावल से किया गया निर्माण
साहबगंज किराना मंडी में स्थापित की गई गणपति की प्रतिमा श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. मंडी के व्यापारियों ने इस प्रतिमा को बासमती चावल से तैयार किया है. बासमती का यह चावल उच्च गुणवत्ता वाला माना जाता है, जिसकी लंबाई अन्य चावलों की तुलना में अधिक होती है. इसे तैयार करने में करीब 10 कारीगर लगे हुए थे, जो ढाई सप्ताह से इसे तैयार करने में जुटे हुए थे.
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सवा कुंतल बासमती चावल से बनी गणेश की प्रतिमा
प्रतिमा को तैयार करने में लगभग सवा कुंतल बासमती चावल लगाया गया है. बाजार में इस चावल की कीमत लगभग 100 से 110 रुपये प्रति किलो है. समिति के सदस्यों की माने तो पहले 50 से 70 हजार रुपये की लागत में गणेश महोत्सव संपन्न हो जाता था, लेकिन इको फ्रेंडली गणपति की तैयारी में अब इनका बजट बढ़कर डेढ़ से दो लाख रुपये हो गया है.
पर्यावरण को सुरछित रखने के लिए इको फ्रेंडली प्रतिमा का किया निर्माण
समिति के सदस्यों का कहना है कि गणपति की प्रतिमा पूर्वांचल की चावल से बनी पहली प्रतिमा है. वहीं समिति के सदस्यों ने 5-6 वर्ष पूर्व यह निर्णय लिया था कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने में उनकी समिति एक महत्वपूर्ण योगदान निभाएगी. उसी उद्देश्य से वह हर साल अलग-अलग खाद्य पदार्थों से गणेश प्रतिमा का निर्माण कराते हैं. अभी तक यह समिति मेवे, रामदाना, सिक्का और इस साल बासमती चावल से गणपति बप्पा की प्रतिमा का निर्माण कराया है.
2008 से गणेश महोत्सव समिति ने मनाने का निर्णय लिया था. व्यापारियों के सहयोग से इसे धूमधाम से मनाया जाता है. गणपति बप्पा की महिमा अपरंपार है. पूरे 10 दिनों तक यह पूरा क्षेत्र गणपति बप्पा मोरिया के जयकारों से गूंजता है. वहीं समिति के सदस्य पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए गणपति बप्पा की मूर्ति का निर्माण कराते हैं. जो विसर्जन के दौरान पूरी तरह पर्यावरण में घुल मिल जाए और किसी प्रकार का कोई पर्यावरण को हानि न हो.
-अजय अग्रहरी, सदस्य,साहबगंज किराना मंडी