गोरखपुर : सावन के आखिरी सोमवार पर जनपद के बरगदही स्थित शिवालय पर अपने ईष्ट के दर्शन के लिए भारी संख्या में लोग उपस्थित हुए. सावन का आखिरी सोमवार और बकरीद एक ही दिन होने के कारण भारी संख्या में पुलिस प्रशासन के लोग सुरक्षा व्यवस्था चुस्त दुरुस्त रखने के लिए मुस्तैद रहे. भटहट ब्लॉक के बरगदही गांव को मुगल शासन काल में मलखा की राजधानी सिरसागढ़ के नाम से जाना और पहचाना जाता था. सिरसागढ़ के किले में स्थित शिव मंदिर को "जोड़े शिवलिंग मंदिर" के नाम से भी पुकारा जाता है. वहां पर महज एक लोटा जल चढ़ाने से सब की मन्नतें पूरी हो जाती हैं. यह मंदिर प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर से महज बीस किलोमीटर की दूरी पर है.
सावन के अंतिम सोमवार पर उमड़ी भक्तों की भीड़. इतिहास से है मन्दिर का सम्बन्ध -
बताया जाता है कि जिस गांव में शिव मंदिर स्थित है वह मुगल शासन काल में एक लघु प्रांत सिरसागढ़ के नाम से मशहूर था. जिसके शासक मलखा सिंह थे. मलखा सिंह की राजधानी सिरसागढ़ को आज सिरसिया गदाई उर्फ बरगदही के नाम से पुकारा जाता है. लोग बताते हैं समय गुजरने के बाद अंग्रेजी शासनकाल में मलखा सिंह का किला खंडहर के रूप में बदल गया. अंग्रेजी हुकूमत ने मुद्रा अष्ट धातु की लालच में आकर वहां पर खुदाई शुरू करा दिया. इस दौरान वहां पर जोड़ा पत्थर निकला. जिसके तह तक जाने के लिए मजदूर दिन रात खुदाई करते रहे लेकिन पत्थर की जड़ तक पहुंचने में असमर्थ रहे. धीरे-धीरे यह बात आस पड़ोस के गांव में आग की तरह फैल गई.
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स्थानीय लोग धीरे धीरे एकत्रित होने लगे और उसे शिवलिंग मानकर उसपर जल चढ़ाने लगे तभी से वहां पर पूजा पाठ शुरू हो गया. समय गुजरने के साथ धीरे-धीरे भव्य मंदिर का निर्माण हुआ. आज सैकड़ों वर्ष पहले निर्मित शिव मंदिर "जोड़े शिव लिंग" के नाम से प्रसिद्ध है. शिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. सावन माह में प्रत्येक सोमवार को जलाभिषेक करने को कांवड़ियों का तांता लगा रहता है. मान्यता यह है कि शिवलिंग पर महज एक लोटा जल चढ़ाने से सब की मुराद और मन्नतें पूरी हो जाती हैं. सावन में रुद्राभिषेक कराने के लिए यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.