गोरखपुर :बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान यानी आरएमआरसी में जिनोम सीक्वेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है. इसके बावजूद नमूने लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज भेजे जा रहे हैं. इसके कारण जांच रिपोर्ट आने में 4 से 6 महीने लग जा रहे हैं. गोरखपुर में अगर इसकी जांच हो तो रिपोर्ट 72 से 96 घंटे में मिल जाती. जांच की सभी सुविधाएं होने के बावजूद इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. प्रभारी की ओर से स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन से स्थानीय स्तर पर जांच करने की अनुमति भी मांगी जा चुकी है.
बता दें कि पूर्वांचल इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारी का बड़ा केंद्र रहा है. इसकी वजह को तलाशने के लिए यहां एम्स की स्थापना और क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान यानी (आरएमआरसी) की मांग उठती रही है. संयोग ऐसा बना कि कोरोना महामारी में जिनोम सीक्वेंसिंग की आवश्यकता को देखते हुए गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज परिसर में स्थापित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान में इसका लैब स्थापित कर दिया गया. इसके बाद करोड़ों की मशीनें भी इंस्टॉल कर दी गईं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों इसका लोकार्पण भी हुआ, लेकिन आज तक एक भी नमूने जांच के लिए यहां नहीं लाए गए. जबकि कोरोना की तीसरी लहर में मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने दिसंबर 2021और जनवरी 2022 में 65 नमूने गोरखपुर क्षेत्र से केजीएमसी भेजे थे. तीन माह बाद वहां से सूचना आई कि नमूने खराब हो चुके हैं, दूसरे नमूने भेजें. उस समय नए नमूने मिल नहीं सकते थे क्योंकि संक्रमण नाम मात्र का था, लिहाजा आज तक पता नहीं चल पाया कि तीसरी लहर में गोरखपुर में कोरोना वायरस का कौन सा वेरिएंट ज्यादा प्रभावी था.