गोरखपुर:दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की केंद्रीय लाइब्रेरी से निकली हुईं किताबें कहां और किस हालत में हैं, इसका पता लगाने के लिए जल्द ही लाइब्रेरी प्रशासन सफल साबित होगा. दरअसल 'आरएफआईडी' नाम की तकनीक के जरिए विश्वविद्यालय के ग्रंथालय से निकलने वाली किताबों की आयु की गणना और लोकेशन का पता लगाया जा सकेगा. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के केंद्रीय ग्रंथालय की स्थापना साल 1967 में हुई थी.
पूरी तरह ऑनलाइन हो चुकी है यह लाइब्रेरी
गोरखपुर विश्वविद्यालय का केंद्रीय ग्रंथालय मौजूदा समय में पूरी तरह से ऑनलाइन हो चुका है. यही नहीं, नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी दिल्ली से जुड़ने वाला यह पहला राज्य विश्वविद्यालय है, जहां विश्वविद्यालय के 15 हजार विद्यार्थी और शिक्षकों का रजिस्ट्रेशन किया जा चुका है. आने वाले समय में यह अपने छात्रों, शोधार्थियों और अध्यापकों को और भी बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने जा रहा है .
शिक्षण संस्थान की आत्मा है लाइब्रेरी
कहा जाता है कि किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता तो वहीं लाइब्रेरी किसी भी विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थान की आत्मा कही जाती है. जिस प्रकार से बिना आत्मा के शरीर का कोई अस्तित्व नहीं होता, वैसे ही अच्छे ग्रंथालय के बगैर किसी विश्वविद्यालय की कल्पना तक नहीं की जा सकती.
केंद्रीय ग्रंथालय में चार लाख किताबों का है विशाल संग्रह
अपने स्थापना काल से यह ग्रंथालय यहां पढ़ने वाले विद्यार्थी और शिक्षकों की सेवा में पूरी तरह से उपस्थित रहा है. करीब चार लाख किताबों के विशाल संग्रह से भरे हुए इस केंद्रीय ग्रंथालय में विश्वविद्यालय के छात्र, शोधार्थी और यहां तक शिक्षक भी आकर शांत माहौल में अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं. लाइब्रेरी का जवाहरलाल नेहरू हॉल ऐसे ही पढ़ने वाले विद्यार्थियों से अक्सर भरा देखा जा सकता है.
लाइब्रेरी के हेड की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रोफेसर हर्ष कुमार सिन्हा की मानें तो विद्यार्थी यहां से पुस्तक ले जाते हैं. देश के शीर्ष प्रकाशन की किताबें लाइब्रेरी में मौजूद हैं. साथ ही एक ऐसा संदर्भ कक्ष है, जहां पर विद्यार्थी, शिक्षकों के साथ ही शोधार्थी बैठकर अपनी जरूरी जानकारियों को हासिल करते हैं.
यह लाइब्रेरी पूरी तरह ऑटोमेटेड है, जहां पर किताबों के निर्गत से लेकर उसकी लोकेशन तक आप एक क्लिक पर जान सकते हैं. यहां पर साइबर लाइब्रेरी स्थापित की जा रही है. साथ ही हम आरएफआईडी तकनीक ला रहे हैं, इसमें एक चिप लगी होती है, इससे वह किताब कहां मूव कर रही है और उसकी लोकेशन कहां है, यह सब पता चल जाएगा. इस व्यवस्था के लागू होने से किताबें पूरी तरह सुरक्षित रहेंगी.
-प्रोफेसर हर्ष कुमार सिन्हा, एचओडी, केन्द्रीय ग्रंथालय, डीडीयू
लाइब्रेरी में आकर अपनी पढ़ाई को पूरी करने वाले छात्र-छात्राओं का मानना है कि क्लास में उन्हें शिक्षक से जो ज्ञान मिलता है, उसको समझने और उसमें अधिक जानकारी जुटाने के लिए लाइब्रेरी एक उपयुक्त स्थान है, जहां शांत माहौल और पढ़ने-लिखने का माहौल होता है. आसपास में पढ़ने वाले छात्रों को देखकर पढ़ने की ललक बढ़ती है और जो जरूरी किताबें होती है, सब हासिल हो जाती हैं.
बहुत जल्द स्थापित की जाएगी साइबर लाइब्रेरी
हाल के दिनों में इस लाइब्रेरी को अपडेट किया गया है, जिसके बाद यह पूरी तरह से ऑटोमेशन की स्थिति में आ चुकी है. यहां पर बहुत जल्द साइबर लाइब्रेरी स्थापित की जाएगी, जिसका लाभ विद्यार्थी-शोधार्थी सभी ले सकेंगे, लेकिन जो सबसे खास होने जा रहा है, वह है किताबों की लोकेशन और उम्र की जानकारी का पता लगाने के लिए आरएफआईडी सॉफ्टवेयर का स्थापित होना. इसके अलावा ग्रंथालय की कोशिश है कि ऐसा ऐप तैयार किया जाए, जिसके माध्यम से लाइब्रेरी पाठक तक पहुंच जाए और पाठक घर बैठे ज्ञान प्राप्त कर सकें.