गोरखपुरः जनपद के ताजपिपरा स्थित मोटेश्वर नाथ शिव मंदिर सदियों पुराना है. श्रवण मास के तीसरे सोमवार को यहां कांवड़ियों की भीड़ जलाभिषेक करने उमड़ी. इस दौरान हर-हर महादेव के जयकारे से पूरा मंदिर परिसर गुंजयमान हो गया. कांवड़ियों का बड़ा जत्था सरयू नदी से कांवड़ में जल भर रविवार को ही मोटेश्वर शिव मंदिर पहुंचा. प्रबंध समीति के सदस्यों की मानें तो सोमवार की भीड़ 50 हजार कांवड़ियों से अधिक रही, जिसमें महिला और नन्हे-मुन्हें श्रद्धालुओं ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. स्वंय सेवकों ने नगरवासियों के सहयोग से कांवड़ियों के रहने खाने-पीने प्रसाद आदि की भरपूर व्यवस्था भी की.
मोटेश्वर धाम में लगी भक्तों की भीड़. कब और कैसे हुई मोटेश्वर शिव मंदिर की स्थापना-
पिपराइच-गोरखपुर मार्ग पर नगर पंचायत पिपराइच कार्यालय स्थित मोटेश्वर शिव मंदिर बहुत पुराना है. पूर्वांचल के लोगों के लिए आस्था का वरदान माना जाता है. समिति अध्यक्ष मनीष रामरायका बताते हैं कि पुरातन में जहां शिवलिंग स्थित है, वहां के पूरे क्षेत्रफल में खेती कि जाती थी.
वर्ष 1871 में एक दिन एक किसान अपने खेत में जुताई कर रहा था. उसका हल एक पत्थर से टकरा गया. किसान ने ग्रामीणों के सहयोग से पत्थर की खुदाई शुरू कर दी. खुदाई के दौरान वहां एक शिवलिंग के आकार का पत्थर निकला. गांव वालों ने उसे शिवलिंग मानकर उसकी पूजा अर्चना के साथ स्थापित कर दिया. आज भी शिवलिंग में कुदाल के चोट का निशा देखने को मिलेगा. धीरे-धीरे यह पत्थर विशाल रूप धारण कर लिया. इसी कारण इनका नाम मोटेश्वर नाथ पड़ा.
स्वर्गीय शान्ति गिरी महराज ने 1945-46 में इस मंदिर को धीरे-धीरे गोरखनाथ मंदिर का प्रारुप देना शुरू कर दिया. समय गुजरने के बाद उन्होंने अपने शिष्य संतोष गिरी को अपना उत्तराधिकारी बना कर अपना शरीर त्याग दिया. लगभग 25 वर्ष से संतोष गिरी महराज के देख रेख और मार्ग दर्शन में इस मंदिर को आगे की तरफ ले जा रहे हैं. 1993 में पहले शान्ति गिरी महराज के प्रयास से कस्बे के कुछ लोगों को लेकर यहां सरयू नदी से जल लाकर जलाभिषेक कार्यक्रम शुरू कर दिया. धीरे धीर कावडिय़ों की संख्या बढ़ती गई .
बड़हलगंज सरयू नदी से लोग लगभग 85 किमी पैदल चल कर पिपराइच आते हैं. आस पास के अधिकतर लोग वहां शुक्रवार को जाते हैं रात्रि वहां विश्राम करते हैं. शनिवार प्रातः संकल्प के साथ जल लेकर चलते हैं. लोगों का यह मान्यता है कि वहां से पांच वर्ष लगातार जल लाकर यहां चढ़ाने से शिवशंकर से मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूर्ण होतीं हैं. पुत्र धन का लाभ लोगों का होता है. हमारे यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम में मंदिर पर बड़े-बड़े धर्मशाला बनाए गए हैं.
गांव के लोगों का मानना है कि वे अपने अपने कन्याओं की दिखाई कराते है तो शंकर जी की कृपा से उस कन्या का विवाह शीघ्र होता है. जिनके पुत्र नहीं होते है वह लोग हमारे वहां सर्वाधिक पूजा कराते हैं. 20 वर्ष से भव्य मेला लगता है. सावन के प्रत्येक सोमवार और नागपंचमी के दिन भव्य मेला लगता है. 40 वर्षों से मकरसंक्रांति का भव्य मेला लगता चला आ रहा है. हमारे वहां भीम सरोवर भी है. जिस पर भीम भगवन भी हैं और छठ मैय्या का भी एक मेला लगता है. जिस पर छठ मैय्या का मूर्ति स्थापना है.
मैं यहां पर करीब 25 वर्षों से पूजापाठ कर रहा हूं. लोग बताते हैं कि यहां के मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. यह मंदिर जमीन की खुदाई करते समय शिवलिंग निकला. तब यह मंदिर बन कर के तैयार हुआ तब से लोग बड़हलगंज से जल लाकर भोले बाबा को चढ़ाते है. और अपनी मन्नतें मांगते हैं हर वर्ष करीब डेढ सो गांव से लगभग 30 हजार कांवड़ियां जलाभिषेक करने आते हैं.
-संतोष गिरी, मुख्य पूजारी, मेटेश्वर नाथ मंदिर