गोरखपुरः धूम्रपान और वायु प्रदूषण जानलेवा है. बावजूद इसके लोग बचाव को लेकर सतर्क नहीं हैं. यही वजह है कि पूरी दुनिया में सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) से पीड़ित लोगों की संख्या आज करीब 30 करोड़ से ज्यादा हो गई है. बीड़ी, सिगरेट और धूम्रपान लोगों के लिए जानलेवा बनता जा रहा है. वहीं, शहरों में बढ़ते प्रदूषण भी लोगों की सांस की नली और फेफड़ों के दम घोट रहे हैं. सीओपीडी शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है. शुरुआती दौर में पहचान हो जाने से इस पर काबू पाना संभव है. लेकिन गंभीर होने पर यह लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल कर देता है या फिर उनकी जान भी ले लेता है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश की बात करें तो सीओपीडी के मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. यह दुनिया का तीसरा किलर बन चुका है. इसमें प्रतिवर्ष करीब 3 लाख लोग अपनी जान गवां रहे हैं. यह कहना है गोरखपुर के मशहूर चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नदीम अर्शद का. जो सीओपीडी दिवस (16 नवम्बर) के अवसर पर मीडिया से बात कर रहे थे. उन्होंने लोगों को प्रदूषण और धूम्रपान से बचने की सलाह दी ताकि इस जानलेवा बीमारी से बचा जा सके.
जानकारी देते चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नदीम अर्शद सही समय पर इलाज जरूरीःविश्व सीओपीडी दिवस के मौके पर डॉक्टर नदीम अर्शद ने कहा कि पूरी दुनिया में आज (16 नवंबर) को 21वां सीओपीडी दिवस है. इसका उद्देश्य लोगों को लंग्स हेल्थ के बारे में जानकारी देना और उसके बचाव के उपायों को बताना है. उन्होंने कहा कि इस बीमारी पर रोक सही समय पर शुरू हुए इलाज से संभव है. इसका मुख्य लक्षण सांस फूलना और खांसी के साथ लगातार बलगम का आना है.
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सीओपीडी लोगों की मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है और यह कम संसाधन वाले देशों और लोगों पर सबसे अधिक असर करता दिखाई देता है. उन्होंने कहा कि यह धूम्रपान करने वालों को ज्यादा प्रभावित करता है. प्रदूषण के संपर्क में आने से भी लोग प्रभावित होते हैं. पूरे विश्व में इस बीमारी से होने वाले आर्थिक नुकसान को बचाने के लिए चेस्ट के डॉक्टरों ने इस अभियान को चलाया है. इससे लोगों की जान बचाई जा रही है. लोगों को आगाह भी किया जा रहा है. डॉ. नदीम ने कहा कि चिकित्सक भी अपने हित से ज्यादा लोगों के हित पर जोर दे रहे हैं. इसलिए इस बीमारी को रोकने में इसके विशेषज्ञ भी बड़ी संख्या में आगे आए हैं.
उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में इसका स्थाई इलाज नहीं है. लेकिन चिकित्सीय संपर्क और दवाओं के स्थाई सेवन से यह समाप्त भी किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि धूम्रपान और धूल के कण से लोग बचने का प्रयास करें. जैसे कोई दिक्कत महसूस हो चिकित्सक से संपर्क जरूर करें.
नवजात शिशु भी शिकारःप्रदूषण की वजह से हर व्यक्ति यहां तक कि पैदा होने वाला बच्चा भी आज एक से लेकर 10 सिगरेट पीने के बराबर प्रदूषण ग्रहण कर रहा है. जो उसके जीवन के लिए आगे चलकर खतरा ही बनता है. उन्होंने कहा कि पहले के दौर में इस बीमारी की चपेट में लोग 40 से 45 वर्ष की उम्र के बाद आते थे. खासकर जो लोग सिगरेट पीते थे. लेकिन, वर्तमान में यह बीमारी 18 और 20 वर्ष की उम्र के बाद से भी देखी जा रही है. सरकार को भी धूम्रपान से जुड़ी चीजों के निर्माताओं और कंपनियों पर रोक के कुछ प्रबंध करने चाहिए यह भी बचाव का बड़ा उपाय है.
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