गोरखपुर:बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज के स्वर्ण जयंती समारोह में शनिवार को बतौर अतिथि शामिल हो रहे सीएम योगी आदित्यनाथ, इससे अपने जुड़ाव का भी रजत जयंती समारोह भी मनाएंगे. करीब ढाई दशक से सीएम योगी इसके हर दर्द से बावस्ता रहे हैं. सांसद के रूप में यहां के संकट और दर्द से निजात की आवाज बुलंद की और मुख्यमंत्री बनते ही मुकम्मल इलाज भी कर दिया. पूर्ववर्ती सरकारों के उपेक्षित रवैये से जो मेडिकल कॉलेज बदहाल हो चुका था. वह बीते साढ़े 5 साल में पूर्वांचल के लोगों में चिकित्सा सुविधाओं के लिहाज से अब बड़े केंद्र के रूप में भरोसे का प्रतीक बनकर उभरा है.
50 साल की अपनी यात्रा में इस मेडिकल कॉलेज ने तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं. गोरखपुर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना से पूर्व तक बीआरडी मेडिकल कॉलेज पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और पड़ोसी देश नेपाल की तराई तक के लोगों के इलाज के लिए एकमात्र बड़ा केंद्र रहा है, पर, पूर्व की सरकारों ने इस केंद्र को उसकी महत्ता के अनुरूप कभी अपनी प्राथमिकता में नहीं रखा. नतीजतन करोड़ों लोगों के इलाज का दारोमदार संभालने वाला यह मेडिकल कॉलेज समयानुकूल संसाधनों के अभाव में खुद ही बीमार सा दिखने लगा. सीएम योगी के मीडिया सेल से जारी इस सूचना में बीआरडी मेडिकल कॉलेज की स्थापना से लेकर, बाबा राघव दास जिनके नाम पर यह मेडिकल कॉलेज स्थापित हुआ है उसकी पूरी विवेचना की गई है.
नब्बे के दशक के दूसरे हिस्से में इसकी बदहाली जब चरम पर पहुंचने लगी तब पहली बार संजीदगी से सुध ली गई और, इस सुध लेने का श्रेय योगी आदित्यनाथ को जाता है. करीब ढाई दशक से योगी इस मेडिकल कॉलेज के रग रग से वाकिफ हैं. 1998 में पहली बार सासंद बनने के पहले से उन्हें इसकी उपेक्षा का पता चल चुका था. सांसद बनने के बाद से मार्च 2017 में मुख्यमंत्री बनने तक संसद का कोई भी ऐसा सत्र नहीं था. जब योगी ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज की समस्याओं से सरकारों की तंद्रा न तोड़ी हो. कभी संसाधनों के अभाव, कभी इंसेफेलाइटिस तो कभी मान्यता के संकट को लेकर योगी देश के सदन में पूर्वी उत्तर की जनता की बुलंद आवाज बने. इतना ही नहीं, कई बार उन्होंने आंदोलन का रास्ता अपनाते हुए मेडिकल कॉलेज से कलेक्ट्रेट और कमिश्नरी तक जनता को साथ जोड़कर चिलचिलाती धूप में पैदल मार्च भी किया. उनके आंदोलनों और संसद में उठाए गए मुद्दों से स्थितियां कुछ बदली भीं लेकिन जनविश्वास बहाली लायक स्थिति तभी बनी जब राज्य की कमान साढ़े 5 साल पहले खुद उनके हाथों में आई. चूंकि योगी बीआरडी की हर समस्या से खुद अवगत थे, इसलिए उन्हें अलग से किसी के सुझाव की जरूरत नहीं थी. एक-एक करके उन्होंने सभी दिक्कतों को दूर करा दिया है. बीआरडी मेडिकल कॉलेज का समूचा बदला परिसर कायाकल्प की जीवंत तस्वीर है. स्वर्ण जयंती समारोह में उन्हें इस मेडिकल कॉलेज से अपने ढाई दशक के संवेदनशील जुड़ाव का भी स्मरण होगा.
इंसेफेलाइटिस के कहर के रहे साक्षी, काबू में करने का भी श्रेय
पूर्वी उत्तर प्रदेश में 4 दशक तक कहर बरपाने वाली इंसेफेलाइटिस के इलाज का सबसे बड़ा केंद्र बीआरडी मेडिकल कॉलेज ही रहा है. एक दौर वह भी था जब मेडिकल कॉलेज में एक बेड पर 3 इंसेफेलाइटिस पीड़ित मासूम पड़े रहते थे. योगी इंसेफेलाइटिस के कहर के खुद साक्षी रहे हैं. उन्होंने मरीजों और उनके परिजनों की पीड़ा को अपनी सजल आंखों से देखा है, हृदयतल तक महसूस किया है. सड़क से सदन तक इस पीड़ा को दूर करने की लड़ाई लड़ी है. उनके ही प्रयासों से वर्ष 2005-06 में इसके लिए टीकाकरण शुरू हुआ था. प्रति वर्ष औसतन 1500 मासूम इंसेफेलाइटिस (जेई और एईएस) से असमय काल कवलित हो जा रहे थे. योगी आदित्यनाथ 2017 में मुख्यमंत्री बने तो इस पर नियंत्रण के लिए अंतर विभागीय समन्वय की फुलप्रूफ कार्ययोजना बनाई. 2017 के पहले बीआरडी मेडिकल कॉलेज में प्रतिवर्ष हजारों बच्चे अति गंभीर अवस्था में भर्ती होते थे. उनमें से 25 फीसदी की मौत हो जाती थी जो बच्चे बच भी जाते थे. उनमें मानसिक एवं शारीरिक दिव्यांगता आ जाती थी. मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2017 में कुल 2,247 मरीज भर्ती हुए थे जिसकी मृत्यु दर 25 से 30 प्रतिशत थी. जबकि वर्ष 2022 में माह अक्टूबर तक एईएस के कुल 125 मरीज भर्ती हुए हैं, जिनमें से 95 फीसदी से अधिक को ठीक कर घर भेजा जा चुका है. जेई (जापानी इंसेफेलाइटिस) के मरीजों की संख्या बेहद कम रही और किसी की मौत भी नहीं हुई. भर्ती मरीजों के निशुल्क उपचार एवं त्वरित इलाज की व्यवस्था के कारण आज बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस से मृत्य दर नगण्य है. चिकित्सक अगले वर्षों तक इस बीमारी का संपूर्ण उन्मूलन सुनिश्चित मान रहे हैं.
सीएम के त्वरित निर्णय से कोविड चिकित्सा का केंद्र बना बीआरडी
सीएम योगी की दूरदर्शिता और त्वरित निर्णय से बीआरडी मेडिकल कॉलेज वैश्विक महामारी कोरोना के इलाज का बड़ा केंद्र बनकर उभरा. कोरोना की रोकथाम में इस मेडिकल कॉलेज का अहम योगदान रहा है. सीएम के दिशानिर्देश पर 250 बेड आईसीयू एवं 250 बेड आइसोलेशन वाले डेडीकेटेड कोविड हॉस्पिटल को क्रियाशील किया गया. इसे सभी जीवन रक्षक संसाधनों से पूर्ण कर इलाज की व्यवस्था की गई. कोरोना काल में यहां करीब 4,500 मरीजों का इलाज किया गया. साथ ही जांच के लिए बीएसएल 3 लैब की स्थापना भी की गई. अभी तक लगभग 21 लाख रोगियों की जांच माइक्रोबायोलॉजी विभाग में एवं 11 लाख रोगियों की जांच आरएमआरसी में की जा चुकी है.