गोरखपुर :कालानमक पूर्वांचल का खास चावल है. इसकी खुशबू ही इसकी पहचान है. माना जाता है कि महात्मा बुद्ध के प्रसाद के रूप में सबसे पहले इस चावल का इस्तेमाल किया गया था. यह चावल पिछले कई वर्षों में विलुप्त सा हो गया था. गोरखपुर से लगा सिद्धार्थनगर जिला इसके उत्पादन का प्रमुख केंद्र होता था. कुछ सालों से इसकी उपज मात्र 20% पर सिमट कर रह गई थी. कृषि वैज्ञानिक राम चेत चौधरी के प्रयास से अब इसकी पैदावार 70% तक पहुंच गई है. यह चावल पौष्टिकता से भरपूर होता है. कृषि वैज्ञानिक ने लोगों को इसकी खासियत बताने के लिए 'स्टोरी ऑफ कालानमक राइस' पुस्तक भी लिख डाली है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ. राम चेत चौधरी ने बताया कि लोगों को काला नमक के इतिहास, उसकी प्रजातियां और खूबियां बताने के लिए उन्होंने 'स्टोरी ऑफ कालानमक राइस' पुस्तक की रचना की है. यह किताब देश ही नहीं विदेश की पहली ऐसी किताब है जिसमें कालानमक के बारे में विस्तार से जिक्र किया गया है. इस पुस्तक में काला नमक चावल खाने से क्या लाभ होगा, यह चावल किन-किन रोगों में लाभकारी होगा आदि की जानकारी दी गई है. कृषि वैज्ञानिक का दावा है कि अगर इस चावल को सुबह और शाम खाया जाए तो कोरोना जैसी बीमारी में यह जिंक की कमी को पूरा कर सकता है. रिसर्च से काला नमक की कई प्रजातियां उत्पन्न की गईं हैं. चावल में महक, स्वाद और पौष्टिकता बरकरार है. फिलहाल अभी यह ऑनलाइन उपलब्ध है. ऑफलाइन डिमांड के लिए कृषि वैज्ञानिक से संपर्क किया जा सकता है.