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गोरखपुर: साम्प्रदायिक सौहार्द का मिसाल है गोरखनाथ मंदिर का मकर संक्रांति मेला

मकर संक्रांति के अवसर पर बाबा गोरखनाथ मंदिर परिसर (Baba Gorakhnath Temple Complex) में दशकों से खिचड़ी मेला लगता चला आ रहा है. यहां आने वाले कारोबारी मुस्लिम समाज से हैं

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गोरखनाथ मंदिर का मकर संक्रांति मेला

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Published : Jan 17, 2022, 4:45 PM IST

गोरखपुर: मकर संक्रांति के अवसर पर बाबा गोरखनाथ मंदिर परिसर (Baba Gorakhnath Temple Complex) में दशकों से लगता चला आया खिचड़ी मेला, सांप्रदायिक सौहार्द की एक मिसाल पेश करता है. यह मेला एक महीने तक चलता है. हिंदुत्व की इस बड़ी पीठ के अधीन लगने वाले मेले का इतिहास कई सौ साल पुराना है. इस मेले में कारोबार के लिए आने वाले लोग भी यहां कई पीढ़ियों से आ रहे हैं.

यहां आने वाले कारोबारी मुस्लिम समाज से भी हैं जो सीतापुर, उन्नाव और बुलंदशहर जैसी जगहों की दूरी तय करके यहां कारोबार के लिए आते हैं. उनका कहना है कि गोरख पीठाधीश्वर और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों या पहले के बड़े महाराज ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ सभी ने उनकी पूरी देखभाल की.

गोरखनाथ मंदिर का मकर संक्रांति मेला


इस मेले में कारोबार करने वाले लोगों को देखकर यही कहा जा सकता है कि पीढ़ियां बदल गईं. लेकिन गोरखनाथ मंदिर परिसर में लगने वाले खिचड़ी मेले में दुकान सजाने वालों का सिलसिला नहीं टूटा. मेले में बर्तन की दुकान हो या एयरगन से गुब्बारे पर निशाने लगाने वाली दुकान, मोबाइल में कैद हो जाने वाली फोटोग्राफी के दौर में आकर्षक फोटो की लगने वाली दुकान. ऐसी तमाम दुकानें मुस्लिम समाज के भाई यहां संचालित करते हैं. इस कारोबार के पीछे उनकी तीन पीढ़ियों का विश्वास छिपा है.

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यहां के व्यापारी बताते हैं कि करीब चार दशक पहले उनके दादा इस मेले में पहली बार दुकान लगाने आए थे. फिर उस कारवां को उनके पिता ने आगे बढ़ाया और अब वह लोग खिचड़ी मेले में आते हैं. महीनों कारोबार करते हैं और बचा- खुचा लाभ लेकर फिर अगले साल आने का मन बनाकर यहां से जाते हैं.

कोरोना काल में भी यह मेला अपनी ओर भीड़ को आकर्षित कर रहा है. साथ ही लोग कोरोना गाइडलाइंस को लेकर जागरूक भी दिख रहे हैं. लेकिन भीड़ तो भीड़ होती है. मेला साल भर में एक बार आता है तो लोग खिंचे चले आ रहे हैं. जो पुराने व्यापारी हैं वह पूरी तरह यहां के व्यापार से अभ्यस्त हो चुके हैं.

यही वजह है कि मेले में उनकी एक-दो नहीं बल्कि तीन- चार दुकानें चलती है. जिस पर उनके घर परिवार के लोग ही कारोबार करते हैं. बड़े-बड़े झूले हों या मौत का कुआं, सर्कस हो या फिर जादूगरी. इस मेले में इस सब का आनंद लोग उठाते हैं.

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