गोरखपुरः इंसेफेलाइटिस की बीमारी से पूर्वांचल के मासूमों को बचाने के लिए उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने बड़ी पहली की थी. गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कालेज परिसर में सपा की सरकार ने 500 बेड के अत्याधुनिक बाल रोग चिकित्सा संस्थान के बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू की गयी थी. इस 14 मंजिला भवन का निर्माण कार्य भी तेजी से चल रहा था, लेकिन वर्ष 2017 में प्रदेश की सरकार बदलने के बाद इसमें कई बदलाव किए गए. प्रदेश की सत्ता में बीजेपी की सरकार आने पर इसे दस मंजिला कर दिया गया. लेकिन सरकार बदलने के 6 वर्ष बाद भी भवन से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर के तमाम कार्य अधूरे हैं. संस्थान में अब तक डॉक्टरों से लेकर नर्स और अन्य स्टाफ की तैनाती भी नहीं हो पाई है.
अब समाजवादी पार्टी के नेता भी इसे लेकर सरकार पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट कर योगी सरकार को घेरा है. सूत्रों की मानें तो इसके संचालन में राजनीतिक द्वंद बड़ा मुद्दा बना हुआ है. वहीं, यह भवन कोरोना काल में बढ़ते हुए मरीजों के लिए बड़े शरणदाता के रूप में उपयोग में लाया गया था. 11 वर्षों में दो बार निर्माण पूरी करने की समय सीमा बढ़ाने के बावजूद इस बाल रोग संस्थान की निर्माण अभी अधूरा है. साल 2015 में इस अस्पताल का 10 मंजिलों का ढांचा बनकर तैयार हो गया था, लेकिन अंदर के काम अब भी अधूरे हैं.
बता दें कि साल 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसका शिलान्यास किया था. इसके निर्माण की जिम्मेदारी राजकीय निर्माण निगम को मिली थी. इसके लिए 252 करोड़ रुपये का बजट भी पास किया गया था. कार्य में रुकावट की वजह से इसका बजट बढ़कर 278 करोड़ हो गया. निर्माण कार्य 2015 में पूरा होना था, जो नहीं हो पाया. साल 2016 में दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह में आधे अधूरे निर्माण के बीच ही लखनऊ से इसकी ओपीडी शुरुआत कर दी गई, लेकिन ओपीडी एक दिन भी नहीं चली. फिर इसे वर्ष 2019 में तैयार कर दिया जाना था, लेकिन 2023 में भी इसका काम अधूरा है.
500 बेड के इस बाल रोग संस्थान में एनआईसीयू और पीडियाट्रिक इंसेंटिव केयर यूनिट बनाए जाने हैं. इसमें ऑक्सीजन से लेकर अन्य सुविधाएं दी जानी है. इसके अलावा यहां पर एक छत के नीचे 15 वर्ष तक के बच्चों का इलाज होना है. लेकिन इसकी शुरुआत कबसे होगी ये भविष्य के गर्त में है. हालांकि इस बाल रोग संस्थान के शुरू होने से बच्चों के गंभीर रोगों में इलाज के लिए लोगों को अभी भी लखनऊ और दिल्ली भागना पड़ रहा है. सूत्रों की मानें, तो राजनीतिक द्वंद और श्रेय लेने की होंड़ में इस संस्थान का निर्माण गति नहीं पकड़ रहा, जबकि कई अन्य चिकित्सीय संस्थानों पर गोरखपुर में भारी-भरकम बजट खर्च हुआ है.