गोरखपुर:25 जून 1975 की मध्यरात्रि को देश में इमरजेंसी लागू हुई थी. इस दौरान चारों तरफ उन लोगों की गिरफ्तारी की जा रही थी जो राजनैतिक, सामाजिक, साहित्यिक और छात्र राजनीति जैसी गतिविधियों में शामिल थे. गोरखपुर विश्वविद्यालय के तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष शीतल पांडेय इन्हीं में से एक थे. जो मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी से गोरखपुर की सहजनवां विधानसभा सीट से विधायक हैं. उस दौरान उनकी भी गिरफ्तारी हुई थी. उन्होंने 19 महीने गोरखपुर जेल में बिताए थे. इस दौरान उनकी मां का निधन हो गया था, जिसमें वह शामिल भी नहीं हो पाए थे. उन्हें आज तक इस बात का मलाल है. वहीं विवाह के ठीक 2 दिन बाद ही उनकी गिरफ्तारी होने से उनके गौने की रस्म भी 2 साल बाद ही पूरी हुई.
इमरजेंसी के दौरान ध्वस्त हो गई थी संवैधानिक व्यवस्था
शीतल पांडे कहते हैं कि इमरजेंसी के दौरान देश में कानून नाम की कोई चीज नहीं रह गई थी. संवैधानिक व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी थी. इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाने वालों को गिरफ्तार किया जा रहा था. इसी क्रम में तब उनकी भी गिरफ्तारी की गई जब वह विरोध स्वरूप छपवाए गए पर्चे को कचहरी में बांट रहे थे. उन्होंने बताया कि उनकी गिरफ्तारी एक्शन में हुई थी न कि घर से.
शीतल पांडे इस इमरजेंसी काल को मीसा काल भी कहते हैं, जिसका अर्थ था 'मेंटिनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट'. जिसे वह लोग इंदिरा-संजय गांधी सिक्योरिटी एक्ट कहते थे. उन्होंने कहा कि जिस लोकतंत्र की वजह से भारत की पूरी दुनिया में एक अलग पहचान कायम थी, उसे इस इमरजेंसी के दौरान रौंद दिया गया था. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में लोक ऊपर होता है और तंत्र नीचे. लेकिन इंदिरा गांधी ने ऐसा कृत्य किया कि उसमें तंत्र ऊपर हो गया और लोक की हत्या होने लगी. आखिरकार इस बवंडर का असर यह रहा कि इंदिरा और उनकी कांग्रेस 1977 के चुनाव में डूब गई.