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गोण्डा के शिक्षक ने तैयार किया पराली निस्तारण मॉडल, राज्य स्तरीय पुरस्कार से हुआ सम्मानित

यूपी के गोण्डा में एक विज्ञान शिक्षक ने किसानों के लिए पराली निस्तारण का एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया है, जो वास्तव में किसानों के लिए वरदान साबित होगा. ऐसा मॉडल तैयार करने के लिए उन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार से नवाजा गया.

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अशोक पाण्डे ने तैयार किया पराली निस्तारण मॉडल.

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Published : Jan 5, 2020, 3:29 AM IST

गोण्डा: जनपद के एक शिक्षक को पराली निस्तारण का रोल मॉडल बनाने के लिए राज्य स्तरीय पुरस्कार से नवाजा गया है. पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण देश के लिए एक बड़ी समस्या है. कम ही किसानों को पराली के निस्तारण की सही जानकारी प्राप्त है.

पराली ऐसे बनेगी सोना
पराली निस्तारण को लेकर चिंतित एक शिक्षक ने मेरठ में आयोजित 47वीं जवाहरलाल नेहरू राज्य स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी में पराली निस्तारण का अचूक मॉडल पेश कर कृषि वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया. इस मॉडल को बनाने के लिए अशोक पाण्डे को प्रदर्शनी में गोल्ड मेडल दिया गया है. अपने मॉडल के जरिए शिक्षक ने यह साबित कर दिया कि पराली किसानों के लिए बेकार नहीं बल्कि सोना है.

पराली निस्तारण मॉडल.

किसानों के लिए साबित होगा वरदान
मुख्यालय के फखरुद्दीन अली अहमद राजकीय इंटर कॉलेज में तैनात विज्ञान शिक्षक अशोक पाण्डे ने किसानों के लिए पराली निस्तारण का एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया है, जो वास्तव में किसानों के लिए वरदान साबित होगा.

किसानों को नहीं है जानकारी
विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षक अशोक पांडे का मानना है कि अगर किसानों को इस बात की जानकारी हो जाए कि फसलों के अवशेष उनके लिए बेकार नहीं, बल्कि सोना हैं और वे इसका उपयोग पशुओं के चारा व जैविक खाद के रूप में कर सकते हैं तो किसान खुद ही खेतों में फसल के अवशेष को नहीं जलाएंगे.

पराली जलाने से होने वाला नुकसान
अशोक पांडे ने बताया कि वजह सिर्फ पराली जलाए जाने के बाद होने वाले धुएं की नहीं है, किसानों को होने वाले नुकसान की भी है, क्योंकि खेतों में फसलों का अवशेष जलाने से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है. मिट्टी के कई परतों का पानी सूख जाता है. ऐसे में किसानों के लिए लाभदायक जीवाणु मसलन राइजोबियम वेक्टर जैसे जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, जो वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन को नाइट्राइट व नाइट्रेट में परिवर्तित कर पौधों को ग्रहण करने में मदद करते हैं.

उन्होंने बताया कि फसलों के अवशेष से निकलने वाला धुआं वायुमंडल को प्रदूषित करता है, जिसका सीधा असर जन स्वास्थ्य पर पड़ता है. तमाम लोग प्रदूषण के कारण ही आंख और अस्थमा जैसे रोगों के शिकार हो जाते हैं.

मॉडल कैसे करता है काम

  • इस मॉडल के मुताबिक किसानों को फसलों के अवशेष को खेतों में बराबर फैलाकर 2 किलोग्राम प्रति बीघा यूरिया का छिड़काव कर दें.
  • इससे फसलों के अवशेष स्वयं ही सड़ने लगेंगे. फिर खेतों की जुदाई रोटावेटर से करें. ऐसे में अवशेष सड़कर कार्बनिक खादों का काम करेंगे.
  • खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी और नमी भी बराबर बनी रहेगी.
  • धान की फसल कटने के बाद यदि गेहूं की बुवाई करनी है तो वह सीड ड्रिल से खेत की बिना जुताई किए पौधों के रिक्त वाले स्थान में गेहूं की बुवाई कर सकते हैं.
  • बुवाई करने के बाद अवशेष को बराबर फैला दें.

फसलों के अवशेष से कैसे बनाएं साइलेज
किसान फसलों के अवशेष को इकट्ठा कर 100 लीटर पानी में 2 किलोग्राम यूरिया डालकर 1 सप्ताह तक अवशेष पर छिड़काव करें. जब वह सड़ने लगे तब उसे चारा मशीन से छोटे-छोटे टुकड़े काट लें. इस साइलेज को भूसा आदि में मिलाकर जानवरों को खिलाएं. इसमें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाएगी और जानवर इसे खूब खाएंगे.

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