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यहां बालरूप में विराजमान हैं हनुमान, देखिए स्वरूप - हनुमानजी बाल रूप मंदिर

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में एक अति प्राचीन मंदिर स्थित है. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में किया गया था. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां हनुमानजी बालरूप में विराजते हैं.

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गाजीपुर प्राचीन हनुमान मंदिर,

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Published : Jun 5, 2021, 2:50 PM IST

Updated : Jun 6, 2021, 6:03 AM IST

गाजीपुर:जिले के भांवरकोल ब्लॉक के दक्षिण में महज 600 मीटर की दूरी पर एक अति प्राचीन हनुमान मंदिर है. यहां हनुमानजी बाल रूप में विराजते हैं. बताया जाता है कि यह मंदिर तेरहवीं शताब्दी का है. इस अति प्राचीन मंदिर का उल्लेख किताबों में भी किया गया है. गाजीपुर के स्वामी सहजानंद पीजी कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य एवं लेखक मांधाता राय ने एक पुस्तक लिखी है, जिसमें गाजीपुर का ऐतिहासिक उल्लेख किया गया है. इस पुस्तक में भी इस मंदिर का जिक्र है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि इस मंदिर पर महर्षि विश्वामित्र ने विश्राम किया था. हालांकि इस बात का कोई प्रमाणिकता नहीं है.

वीडियो रिपोर्ट.

शिवमुनि राय ने कराया मंदिर का जीर्णोद्धार

इस अति प्राचीन मंदिर को बचाने के लिए शेरपुर गांव निवासी शिवमुनि राय 80 के दशक से ही इस मंदिर की देखरेख कर रहे हैं. शिवमुनि राय भांवरकोल ब्लॉक में ट्यूबेल ऑपरेटर थे, जिन्होंने अपना पूरा तनख्वाह इस मंदिर के विकास में लगा दिया. आज भी वे इस मंदिर को विकसित करने के लिए जी जान से लगे हुए हैं.

बालरूप में विराजमान हनुमानजी.
मंदिर के आसपास सैकड़ों बीघे में फैला था जंगल

स्थानीय लोग बताते हैं कि जिस जगह पर मंदिर है, उसके अगल-बगल में कोई गांव नहीं हुआ करता था. पूरा क्षेत्र विशाल जंगल हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे मंदिर के कुछ दूरी पर गांव भी बस गए. वहीं महज 600 मीटर पर ब्लॉक भी स्थित है.

मन्नत पूरा होने के बाद भूले जनप्रतिनिधि

पुजारी और स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बाल स्वरूप हनुमानजी में काफी शक्तियां हैं. यहां पर जो भी प्रतिनिधि हनुमानजी की शरण में आया है और दिया जला कर गया, उसने हमेशा जीत दर्ज किया है. उन्होंने बताया कि यहां पर भक्त जो भी मन्नत मांगते हैं, उनकी हर मनोकामना बालरूप हनुमान जी पूरा करते हैं.

मंदिर में एकत्रित श्रद्धालु.

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लोगों ने मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए उठाई आवाज

लोगों ने इस बालरूप हनुमान मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए आवाज उठाया और कहा कि यदि सरकार और जनप्रतिनिधि इस मंदिर प्रांगण को विकसित कर दे तो यह किसी पर्यटन स्थल से कम नहीं होगा. मंदिर के पास अब भी लगभग 8 से 10 बीघा जमीन खाली पड़ी हुई है, जिसमें काफी संख्या में औषधीय पेड़-पौधे लगाए गए हैं. लोग यह भी बताते हैं कि यहां के जंगल में केवल औषधीय पौधे मिलते हैं, जिससे तमाम तरीके का उपचार किया जाता है.

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यदि इस मंदिर के विकास की बात करें तो ग्राम पंचायत स्तर पर मंदिर प्रांगण में एक पोखरी का निर्माण मनरेगा मजदूरों से कराया गया है. वह भी अभी सही ढंग से नहीं बन पाया है. लोगों की मांग है कि यदि सरकार इस मंदिर को पर्यटन के तौर पर विकसित करें तो यह स्थान काफी रमणीय व दर्शनीय होगा. वहीं, औषधि के लिए इस मंदिर का पौधा भी सुरक्षित रहेगा, जिससे लोगों के उपचार में काफी मदद मिलेगी.

Last Updated : Jun 6, 2021, 6:03 AM IST

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