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सरकार की लापरवाही, कागजों में अपना गांव ढूंढ रहे ग्रामीण

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में एक गांव ऐसा भी है, जिसका कहीं पर कोई नाम-ओ-निशान भी नहीं है. आरोप है कि 2011 में हुई जनगणना के दौरान अधिकारियों की लापरवाही की वजह से गांव का नाम बदल दिया गया. अब गांव का नाम बदले जाने से न तो गांव की कोई पहचान जिंदा है और न ही गांव के लोगों को कोई सुविधा मिल पा रही है.

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Published : Nov 15, 2020, 2:20 PM IST

गांव का नाम बदलने से हो रही परेशानी.
गांव का नाम बदलने से हो रही परेशानी.

गाजीपुर: प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल इंडिया के नारे पर अधिकारी पलीता लगा रहे हैं. मोहम्मदाबाद तहसील में एक गांव ऐसा ही है जिसका गूगल मैप पर कोई वजूद नहीं है. गांव का नाम है माढूपुर. माढूपुर गांव का नाम गूगल के नक्शे से ही गायब है. इस वजह से गांव का विकास भी लगातार बाधित हो रहा है. वर्ष 2011 की जनगणना में टाइपिंग एरर के चलते पूरे गांव की सूची माढूपुर के बजाये महरुपुर ग्राम सभा में दर्शा दी गई.

गांव का नाम बदलने से हो रही परेशानी.

एक जैसा नाम होने से हुई गलती

जानकारी के मुताबिक 2011 में हुई जनगणना के दौरान लिखावट में गड़बड़ी की वजह से माढूपुर गांव का नाम महरुपुर हो गया. इस वजह से गाहे-बगाहे कुछ विकास परियोजनाएं जैसे-तैसे आती हैं, लेकिन वह भी पास के किसी दूसरे गांव महरुपुर के नाम पर आती हैं. ग्राम प्रधान बताते हैं कि उन्होंने इसकी शिकायत एनआईसी और हर जिम्मेदार से की, लेकिन प्रशासन गहरी नींद में सोया है. फिलहाल जनगणना में शामिल न होने की वजह से इसे गूगल मैप में शामिल नहीं किया गया है.

इस पूरे मामले की विस्तार से जानकारी लेने ईटीवी भारत की टीम माढूपुरा गांव पहुंची. यहां हमारी मुलाकात पेशे से अधिवक्ता और गांव के प्रधान जयराम तिवारी से हुई. जयराम तिवारी ने बताया कि गाजीपुर के विकासखंड मोहम्मदाबाद में माढूपुरा गांव पड़ता है. एनआईसी और गूगल मैप में कोई डाटा न होने के कारण इस गांव के 2500 लोग तमाम सरकारी योजनाओं और सुविधाओं से वंचित है.

विधायक और सांसद को दिया जा चुका है ज्ञापन

ग्राम प्रधान जयराम तिवारी ने बताया कि गांव में न तो आयुष्मान भारत योजना के गोल्डन कार्ड बन पा रहे हैं, और न ही प्रधानमंत्री आवास. बेसलाइन के तहत शौचालय लाभार्थियों की लिस्ट में ग्रामीणों का नाम नहीं था. काफी जद्दोजहद के बाद एलओबी वन और टू में नाम डाला गया. उन्होंने क्षमता के मुताबिक स्थानीय और सभी प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर लखनऊ के सक्षम अधिकारियों को जानकारी दी. साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिधि विधायक और सांसद को भी इस बाबत लिखित ज्ञापन देकर अवगत कराया जा चुका है, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ.

एक भी व्यक्ति का नहीं बना आयुष्मान गोल्डन कार्ड

प्रधानमंत्री मोदी की महत्वकांक्षी योजना आयुष्मान भारत का एक गोल्डन कार्ड तक गांव में नहीं बनाया गया है. ग्राम प्रधान ने बताया कि एनआईसी लखनऊ के अधिकारियों से टेलिफोनिक बात हुई. तब उन्होंने इसे ठीक कराने की बात कही थी, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. इस कमी के चलते पिछले 5 वर्षों में गांव में एक भी पीएम आवास नहीं बन सका. गांव के एक भी व्यक्ति का आयुष्मान गोल्डन कार्ड नहीं बना.

यहां नहीं बनता कोई प्रमाण पत्र

ग्राम प्रधान ने बताया कि यहां के लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र जैसे महत्तवपूर्ण दस्तावेजों को बनवाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यह सभी प्रमाण पत्र माढूपुर गांव के नाम से नहीं बनते. लगातार आश्वासन दिया जाता है कि समस्या को जल्द ठीक करा दिया जाएगा.

ग्राम प्रधान बताते हैं कि यदि मृत्यु प्रमाण पत्र या जन्म प्रमाण पत्र बनवाना होता है, तो माढूपुर गांव के नाम से नहीं बनता. इसके लिए अलग ग्रामसभा कुंडेसर या महरुपुर के विकल्प का चुनाव करना पड़ता है. उनका गांव डिजिटल इंडिया में पहचान के संकट से जूझ रहा है. उन्होंने कहा कि भारत के मानचित्र से हमारा गांव गायब है.

2011 की जनगणना पर सवाल

2011 की जनगणना पर सवाल उठाते हुए ग्राम प्रधान ने सीधे तौर पर प्रशासनिक अधिकारियों पर आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि जनगणना के दौरान किसी को पता नहीं लगने दिया गया कि जनगणना हो रही है. केवल बंद कमरे में प्राइवेट ऑपरेटरों के माध्यम से जनगणना का कार्य कराया गया. जिन्होंने शब्दों के हेरफेर से माढूपुर गांव को गायब कर दिया.

एसडीएम ने दिया आश्वासन

इस पूरे मामले में एसडीएम मोहम्दाबाद राजेश कुमार गुप्ता ने बताया कि वह सूचनाधिकारी और एनआईसी से बात करेगें. ताकि इस समस्या का उचित हल जल्द से जल्द निकाला जा सके. ग्राम प्रधान की बातों और जिला प्रशासन के आला अधिकारियों की दो अलग-अलग बातों से आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि आखिर क्यों गांव की इस समस्या का समाधान अब तक नहीं हो सका. अब देखने वाली बात यह होगी कि माढूपुर गांव को क्या डिजिटल भारत में जगह मिलेगी या यह गांव ऐसे ही गुमनाम रह जाएगा.

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