गाजीपुर: मुहम्मदाबाद तहसील का सेमरा गांव कटान के दंश से उबर नहीं पा रहा है. प्राथमिक विद्यालय सेमरा प्रथम के ठीक बगल की भूमि पर कटान प्रभावित लोग झोपड़ी डालकर अपनी जिंदगी बिता रहे हैं. कटान प्रभावित लोग 8 साल से प्राथमिक विद्यालय में ही अपनी जिंदगी बसर कर रहे थे. अब स्कूल का कायाकल्प किया जा रहा है. स्कूल से इन कटान प्रभावित लोगों को हटा दिया गया है. अब वह स्कूल के पास की भूमि पर झोपड़ी डालकर जिंदगी बसर कर रहे हैं. जिला प्रशासन द्वारा पुनर्वास के लिए आवंटित भूमि पर कटान प्रभावित लोग जाने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि वह इलाका शेख राय के ताल के नाम से प्रसिद्ध है और बाढ़ प्रभावित ऐसे में वहां कैसे बसें.
'प्रशासन द्वारा लोलैंड भूमि को किया गया चिह्नित'
स्थानीय बब्बन राय ने बताया कि सपा सरकार में कटान प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए 15 लाख बीघे की भूमि खरीदने के लिए पैसे आए थे, लेकिन जिस जमीन को चिह्नित कर खरीदारी की गई वह असिंचित थी, जिसका मूल्य तीन से चार लाख रुपये बीघा था. प्रशासन को प्रभावित लोगों से बातकर बेहतर भूमि का चयन करना चाहिए था, जहां कटान प्रभावित लोगों को बसाया जा सके. प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से लोलैंड भूमि को चिह्नित किया गया. इस प्रकरण में कुछ अधिकारियों को जेल भी जाना पड़ा था. बाढ़ प्रभावित शेख सराय का ताल नाम से प्रचलित इलाके में कम दाम पर जमीन चिह्नित कर ली गई, जिससे कटान प्रभावित लोग वहां जाने को तैयार नहीं है.
'लोलैंड जमीन की वजह से वहां नहीं रहना चाहते कटान पीड़ित'
कटान पीड़ित प्रेम नाथ गुप्ता ने बताया कि यह गांव सूखा पड़ने पर जश्न मनाता है, लेकिन जब यहां बाढ़ आती है तो गम का पहाड़ टूट जाता है. बाढ़ का पानी उतरने के कम से कम 6 महीने तक पशुओं के लिए चारा तक उपलब्ध नहीं हो पाता. घर में खाने को भी कुछ नहीं रह जाता. इसलिए यहां का किसान हमेशा यही मनाता है कि यहां कभी बाढ़ न आए. उन्होंने बताया कि यदि इस गांव में बाढ़ नहीं आती तो अब तक काफी विकास होता. जब-जब बाढ़ आती है, तब-तब यह गांव 10 वर्ष पीछे हो जाता है. 2012-13 में बाढ़ आई थी, वह लोग अभी भी विस्थापित हैं. 2016 में भी बाढ़ की विभीषिका आई, जिसकी क्षतिपूर्ति भी अब तक नहीं मिल पाई. कटान प्रभावित लोगों को जो राहत मिलनी थी वह अब तक नहीं मिली.
प्रेम नाथ गुप्ता ने बताया कि जिला प्रशासन के द्वारा कटान प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए सरकार ने पैसे भी भेजें और जमीन भी आवंटित की गई. यह कटान प्रभावित परिवार झोपड़ी में जिंदगी बसर करने को तैयार हैं, लेकिन जिला प्रशासन द्वारा चिह्नित जमीन पर जाने को तैयार नहीं हैं. इसीलिए उनके आवास बनाने के लिए आया पैसा भी उन्हें नहीं मिल सका. अब हर साल वह बाढ़ आने पर मातम और सूखा पड़ने पर खुशी मनाते हैं. कुल विस्थापित 558 लोगों में से 378 लोग पिछले कई सालों से आसपास के प्राइमरी और मिडिल स्कूल में आसरा लिए हुए थे. अब प्राइमरी स्कूल से उन्हें निकाल दिया गया है.