गाजीपुर:मजदूरों को रोजगार की गारंटी देने के लिए 2005 में मनरेगा योजना शुरू की गई थी. इस योजना के अंर्तगत भ्रष्टाचार और पैसों के बंदरबांट का मामला सामने आया तो सरकार ने सीधा मजदूर के खाते में डीबीटी के माध्यम से मेहनत की कमाई भेजने की व्यवस्था की. इसके बावजूद मजदूरों को 100 दिन के रोजगार की गारंटी नहीं मिलती है. इस पूरे मामले को लेकर गाजीपुर जिला प्रशासन अनजान है.
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ग्राम प्रधान मजदूरों तक नहीं पहुंचनेदेते पैसा
गरीबों और मजदूरों के मनरेगा जॉब कार्ड बनाए गए हैं. वह मजदूरी भी करते हैं, खाते में पैसे भी आते हैं, लेकिन उन तक पैसे नहीं पहुंचते हैं. जब बैंक से पैसा लेकर वह बाहर निकलते हैं,तब रसूखदार उनके पैसे छीन लेते हैं. वहीं कई स्थानों पर मजदूरों से काम के बदले ग्राम प्रधान जेसीबी आदि मशीनों से काम लेते हैं और मजदूरों पर दबाव बनाकर उनके जॉब कार्ड से पैसा ले लेते हैं. कागज के पन्नों में हर दिन काम कराए जाते हैं, पर हकीकत में सरकारी पैसे को ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम प्रधानों द्वारा लूट का हरसंभव जुगाड़ बनाया जा रहा है.
इन बिचैलियों की चपेट में है कई गांव
पहले मनरेगा में भ्रष्टाचार के तहत मजदूरी कराने के बाद मजदूरी कम मिलने की शिकायतें आती थी. इसको खत्म करने के लिए उनके हक का पैसा सीधे उन तक पहुंचाने के लिए डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर व्यवस्था लागू की गई. लेकिन उससे भी कुछ खास फायदा होता नजर नहीं आ रहा है. गोलमाल और घालमेल का खेल बैंक के बाहर चल रहा है. मजदूरों का काम अब मशीनें कर रही है. गाजीपुर के देवकली, भीमापार, मोहम्दाबाद और करंडा में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं.