गाजीपुर: गंगा तटीय गांवों में शवदाह गृह निर्माण की योजना को सरकार ने हरी झंडी दी थी. योजना को अमल में लाते हुए तमाम शवदाह गृहों का निर्माण कराया गया. आम दिन में तो सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन कोरोना वायरस से हुई मौतों ने शवदाह गृहों को लेकर बनायी गई योजना और उसकी हकीकत की पोल खोल दी. गंगा में शवों के उतराने की तस्वीरें सामने आने पर शासन से लेकर प्रशासनिक अमले में हड़कंप मच गया. 10-20 नहीं, बल्कि सैकड़ों की संख्या में मिले शवों के बाद जांच पड़ताल शुरू हुई. लिहाजा सरकार ने गंगा को अविरल निर्मल बनाए रखने के लिए शवदाह गृहों पर शवों के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी और अन्य सामाग्री की व्यवस्था करने के आदेश दिए. फिर भी बदहाल सूरत पर ज्यादा बदलाव नजर नहीं आया. और आया भी तो कितना?. इसकी पड़ताल करने के लिए ईटीवी भारत की टीम गंगा किनारे बनाए गए शवदाह गृहों पर पहुंची.
पटकनिया और गरुआ मकसूदपुर अंत्येष्टि स्थल का रियलिटी टेस्ट
गाजीपुर के ग्रामीण इलाकों में पंचायतीराज विभाग ने साल 2013 से अब तक 49 अंत्येष्टि स्थल बनाए हैं, जिसमें से 9 अस्तित्व में नहीं हैं. हालांकि 40 अंत्येष्टि स्थल क्रियाशील हैं. यानी विभाग के मुताबिक 40 अंत्येष्टि स्थलों पर शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. प्रशासन के दावों में कितनी सच्चाई है, इसका रियलिटी टेस्ट किया गया. टीम ने सुहवल थाना क्षेत्र स्थित पटकनिया और गरुआ मकसूदपुर गांव के अंत्येष्टि स्थल का जायजा लिया. जहां से चौंकाने वाली हकीकत सामने आई. पटनिया शवदाह स्थल पर बीते 10 दिन में महज 2 शवों का अंतिम संस्कार किया गया है. इससे पहले यहां पर अव्यवस्थाओं की भरमार थी. वहीं गरुआ मकसूदपुर अंत्येष्टि स्थल पर साल 2014-15 के बाद अभी तक एक भी शव का अंतिम संस्कार नहीं किया गया. इस अंत्येष्टि स्थल को किसान और ग्रामीण आरामगाह के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.
शवदाह स्थल पर 10 क्विंटल लकड़ी और एक सफाईकर्मी तैनात