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स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर 1.48 करोड़ रुपये का शौचालय घोटाला

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में एक गांव में शौचालय के नाम पर करोड़ों रुपये के बंदरबांट की बात सामने आयी है. वर्तमान प्रधान प्रतिनिधि और कुछ ग्रामीणों ने पूर्व प्रधान के प्रतिनिधि और सेक्रेटरी पर आरोप लगाया है.

गाजीपुर
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Published : Apr 5, 2021, 5:09 PM IST

गाजीपुरः भारत सरकार की ओर से बड़े जोर-शोर से स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया गया था. इसके तहत तमाम गांवों की सफाई और सौंदर्यीकरण के लिए करोड़ों रुपये का बजट आवंटित किया गया. कुछ गांवों में सफाई का बजट ही साफ हो गया और गांव गंदे रहे गए. ऐसे ही हालात गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद तहसील के गांव शेरपुर में भी दिखाई दे रहे हैं. यहां प्रशासन की ओर से कुल 2225 शौचालय के निर्माण के लिए बजट भेजा गया था लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि 1224 शौचालयों का निर्माण कराये बिना ही 1.48 करोड़ रुपये का बजट जारी करा लिया गया. इतना ही नहीं 24 जुलाई 2019 को उस समय की ग्राम प्रधान की मौत होने के बाद भी उनके तेरहवीं संस्कार तक कई लाख रुपये का चेक के माध्यम से भुगतान भी करा लिया गया. शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि गांव के पूर्व प्रधान के प्रतिनिधि और सेक्रेटरी की मिलीभगत से यह करोड़ों का घपला किया गया है.

गाजीपुर में शौचालय घोटाला

आठ शहीदों का गांव भी घोटाले से नहीं रहा अछूता
जनपद गाजीपुर की शेरपुर ग्राम सभा वीरों की भूमि है. इसने 15 अगस्त 1947 से पहले ही मोहम्मदाबाद तहसील पर 18 अगस्त 1942 को झंडा लहरा दिया और 8 लोग शहीद हो गए थे लेकिन आज वह गांव घोटालों का शिकार हो रहा है. इस गांव में विकास के लिए करोड़ों रुपये शासन की ओर से भेजे गये. यह गांव गंगा किनारे का गांव होने के चलते स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्राथमिकता में रहा. 2225 शौचालय इस ग्रामसभा को दिये गये लेकिन इस ग्राम सभा में शौचालय के निर्माण में जमकर बंदरबांट की गयी. इसकी शिकायत गांव के ही रहने वाले मनोज राय उर्फ डब्ल्यू ने लिखित शपथ पत्र के साथ जिलाधिकारी से की. इस पर जिलाधिकारी ने जिला अल्पसंख्यक अधिकारी को नामित कर इस गांव के शौचालय निर्माण की जांच कराई. जांच में यह तथ्य सामने आया कि 1224 शौचालयों का निर्माण हुआ ही नहीं. इसकी कीमत एक करोड़ 48 लाख रुपये बताई जा रही है. इसके साथ ही जो अन्य शौचालय बने, वह भी अपूर्ण हैं. ऐसे में बने शौचालयों में भी करीब 11 लाख 57 हजार रुपये का घपला सामने आया है. इस तरह से कुल मिलाकर इस गांव में एक करोड़ 58 लाख रुपये के सरकारी धन का दुरुपयोग पाया गया. इस दौरान वहां के रहने वाले स्थानीय नागरिकों से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि जो शौचालय बनाए गए हैं, उन शौचालयों का उपयोग आज तक उन लोगों ने नहीं किया है कारण कि वह प्रयोग के लायक नहीं हैं.

प्रधान की मौत के बाद गड़बड़ी
इस गांव की प्रधान मंजू राय रहीं. 24 जुलाई 2019 को प्रधान मंजू राय का मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. उसके बाद उपचुनाव हुआ और दूसरी महिला प्रधान चुनी गईं. इनके प्रतिनिधि लल्लन राय ने आरोप लगाया है कि ग्राम प्रधान मंजू राय की मौत 24 जुलाई 19 को होने के बाद से लेकर उनके तेरहवीं संस्कार तक में कई ट्रकों के माध्यम से अलग-अलग मदों का भुगतान किया गया है. इतना ही नहीं 2 चेकों का भुगतान मृतक मंजू राय के नाम से उनके स्वयं के खाते में भी किया गया है.

दिवंगत पर प्रधान प्रतिनिधि जेपी राय ने कहा, सभी आरोप बेबुनियाद
इस पूरे प्रकरण पर दिवंगत प्रधानमंत्री मंजू राय के प्रतिनिधि जेपी राय से बात की गई तो उन्होंने बताया कि विपक्ष के द्वारा लगाये गये आरोप बेबुनियाद हैं क्योंकि उनके द्वारा सभी लाभार्थियों के खाते में पैसे भेजे गए हैं. इतना ही नहीं उन्होंने ग्राम प्रधान की मृत्यु के बाद चेक से किए गए भुगतान के बारे में कहा कि जब उन्हें इलाज के लिए जाना था उसके पूर्व उन्होंने चेकों पर हस्ताक्षर किये थे और उसी समय बैंक में जमा करा दिया गया था. इसका क्लियरेंस बाद में हुआ इसलिए चेक के भुगतान की तिथि उनके मौत के बाद हो सकती है.

DPRO रमेश उपाध्याय ने स्वीकारी घोटाले की बात
वहीं जब इस पूरे प्रकरण पर जिला पंचायत राज अधिकारी रमेश उपाध्याय से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस ग्रामसभा की तीन बार जांच हो चुकी है और इस बार की जांच में इतने बड़े घोटाले की बात सामने आई है, जिसकी पूरी रिपोर्ट जांच अधिकारी के द्वारा विभाग को सौंपी गई है. इस पर वह आगे की कार्रवाई करेंगे. उन्होंने बताया कि ग्राम प्रधान की मौत होने के बाद और इस पूरे घोटाले की जिम्मेदारी सेक्रेटरी के ऊपर होगी और आने वाले समय में एफआईआर भी सेक्रेटरी पर ही की जाएगी.

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सेक्रेटरी रजनीकांत उपाध्याय ने कहा नहीं हुआ कोई घोटाला
वहीं इस पूरे प्रकरण पर शेरपुर गांव के सेक्रेटरी रजनीकांत उपाध्याय ने कहा कि गांव की राजनीति के चलते यह मामला उछाला जा रहा है. उन्होंने बताया कि जांच अधिकारी के द्वारा बिना जांच के ही यह आरोप लगाया गया है. सभी शौचालय निर्मित हैं. अधिकांश लाभार्थियों के खाते में पैसे भेजे गए हैं. इसके साथ ही ग्राम प्रधान की मौत के बाद पैसे उतारे जाने के मामले में कहा कि यह मामला पूरी तरह से फर्जी है क्योंकि ग्राम प्रधान की मौत से पहले 23 जुलाई को उनके द्वारा सभी चेकों को बैंक में लगाया गया था. हो सकता है कि बैंक के द्वारा पैसे बाद में भेजा गया हो.

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