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जानिए...नेशनल अवॉर्ड विजेता दिव्यांग क्रिकेटर रामबाबू की कहानी

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Published : Nov 21, 2020, 4:22 AM IST

गाजियाबाद के दिव्यांग क्रिकेटर रामबाबू शर्मा ने 7 साल की उम्र में ट्रेन हादसे में अपना एक पैर गंवा दिया था, लेकिन अपनी हिम्मत से उन्होंने अपने क्रिकेटर बनने का सपना पूरा किया है. मौजूदा समय में रामबाबू शर्मा दिव्यांग क्रिकेट एसोसिएशन के बैनर तले खेलते हैं और यूपी टीम के कैप्टन हैं.

नेशनल अवॉर्ड विजेता दिव्यांग क्रिकेटर रामबाबू .
नेशनल अवॉर्ड विजेता दिव्यांग क्रिकेटर रामबाबू .

गाजियाबाद: दिल में अगर जज्बा हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं है. ये बात गाजियाबाद में एक ऐसे क्रिकेटर ने साबित कर दिखाई है, जो कहने को तो दिव्यांग है, लेकिन उनका हौसला किसी इंटरनेशनल क्रिकेटर से कम नहीं. हम बात कर रहे हैं दिव्यांग क्रिकेटर रामबाबू शर्मा की. 7 साल की उम्र में एक ट्रेन हादसे में उन्होंने अपना एक पैर गंवा दिया था, लेकिन अपनी हिम्मत से उन्होंने अपने क्रिकेटर बनने का सपना पूरा किया है. आज रामबाबू शर्मा दिव्यांग क्रिकेट एसोसिएशन के बैनर तले खेलते हैं. फिलहाल वो यूपी टीम के कैप्टन हैं.

जानिए नेशनल अवॉर्ड विजेता दिव्यांग क्रिकेटर रामबाबू की कहानी.

उनसे प्रेरणा मिलने के बाद बनी पूरी टीम

गाजियाबाद में हुए एक दिव्यांग क्रिकेट टूर्नामेंट में उनकी मेहनत से उनकी टीम रनर अप रही. हालांकि रामबाबू शर्मा आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, लेकिन उन्होंने हालातों के सामने हार नहीं मानी है. उनका कहना है कि अपने बचपन सपने क्रिकेट से वो कभी दूर नहीं हो सकते. अपनी इसी मेहनत की वजह से उन्हें कई सम्मान हासिल हो चुके हैं. उन्हीं से मिली प्रेरणा की वजह से दिव्यांग क्रिकेट टीमें बन पाई हैं. जो अलग-अलग जगहों पर टूर्नामेंट का हिस्सा बन रही हैं.

क्रिकेट के लिए चलाई ई-रिक्शा

लॉकडाउन से पहले तक रामबाबू शर्मा ने ई-रिक्शा भी चलाई है. क्रिकेट खेलने के लिए और घर पालने के लिए उन्होंने ई रिक्शा चलाने का फैसला लिया था. उनके क्रिकेट को देखकर एक कारोबारी ने उनको ई-रिक्शा उपहार में दी थी, लेकिन लॉकडाउन के दौरान ई रिक्शा की बैटरी खराब हो गई, जिसकी वजह से वह उसे नहीं चला पा रहे हैं. फिलहाल वे क्रिकेट पर पूरा ध्यान लगा रहे हैं. उनका मानना है कि दिव्यांग क्रिकेट को इतना आगे ले जाया जाएं, जिससे आने वाले वक्त में इससे जुड़े क्रिकेटर इसे रोजगार के तौर पर भी अपना सकें और उनका गुजारा भी क्रिकेट से ही चल पाए.

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