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बुलबुल यानी नई गाड़ी..ऐसे कोड वर्ड में गाड़ियों के नाम रखकर देते थे वारदात को अंजाम, अरेस्ट - noida latest news

ग्रेटर नोएडा पुलिस ने एक ऐसे वाहन चोर गैंग का पर्दाफाश किया जो गाड़ियों के नाम कोड वर्ड में देकर वारदात को अंजाम देता था. पुलिस ने गैंग के चार लोगों को अरेस्ट कर लिया है.

कोड वर्ड में करते थे गाड़ी चोरी की बात

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Published : Sep 8, 2019, 9:22 PM IST

नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा: ग्रेटर नोएडा पुलिस ने वाहन चोरों के एक गैंग का पर्दाफ़ाश किया है. ये गैंग अजब-गजब कोड वर्ड के आधार पर गाड़ी चोरी और लूट की घटनाओं को अंजाम देता है.

कोड वर्ड में करते थे गाड़ी चोरी की बात

चारो आरोपी हुए गिरफ्तार
पुलिस ने चारो आरोपी मुस्तकीम, नेपाल सिंह उर्फ बिल्लू, भूरा उर्फ गुलजार अहमद और नफीस को रोजा जलालपुर रेलवे फाटक के पास से गिरफ्तार किया है. ये सभी शातिर किस्म के चोर हैं जो अजब-गजब कोड वर्ड के आधार पर गाड़ी चोरी और लूट की घटनाओं को अंजाम देते थे.

कोड वर्ड में करते थे गाड़ी चोरी की बात
गैंग के बदमाश आपस में फोन पर बात करते वक्त कोड वर्ड का ही इस्तेमाल करते थे. इससे पुलिसकर्मियों को चोरों को पता नहीं लग पाता था. कई बार तो ऐसा भी हुआ कि पुलिस चोरों के काफी करीब होकर भी उन्हें नहीं पकड़ पाई.

अच्छी कंडीशन की गाड़ी को दम, नई गाड़ी को बुलबल और पुरानी गाड़ी को खुलने लायक बोलते थे. जिस गाड़ी की कंडीशन अच्छी होती थी उसके लिये बिस्कुट की व्यवस्था करना बताते थे.

गाड़ी की इंजन नंबर और चैसिस नंबर की प्लेट जिस पर नम्बर लिखे होते थे उसे बिस्कुट कहते थे. स्कॉर्पियो गाड़ी चोरी करनी हो तो उसे बम कहते थे.

पुलिस ने छोटी-बड़ी 5 गाड़ियां की बरामद
पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से पुलिस ने एक होण्डा अमेज, एक वैगन आर, एक आल्टो, एक सैन्ट्रो और एक स्कार्पियो गाड़ी बरामद की है.

चार पहिया वाहनों की नम्बर प्लेटें, 9 पुराने लॉक, 82 नई चाबियां और गाड़ी चोरी करने में यूज होने वाले औजार बरामद किए हैं.

रेकी करके करते थे चोरी
आरोपी मुस्तकीम और नेपाल सिंह का गैंग अपनी कार से चोरी करने से पहले रेकी करने जाते थे. रेकी के लिए वे सुनसान और ऐसी जगह पर जहाँ पर गाड़ियाँ तो पार्क होती हैं लेकिन वहां कोई पार्किंग वाला या चौकीदार मौजूद नहीं होता था.

फिर गाड़ी के बराबर में अपनी गाड़ी खड़ी करके उसके लॉक को औजारों से खींचकर मौके पर ही उसकी चाबी बनाकर चोरी कर ले जाते थे. चोरी की गाडियों को वे अपने परिचित कबाड़ियों को 20 से 30 हजार रुपये में बेच देते थे.

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