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दिवाली पर गोबर से बने दिये करेंगे घर-आंगन को रोशन

दिवाली पर घरों को रोशन करने के लिये जलाये जाने वाले मिट्टी के दियों के स्थान पर इस बार गोबर के दिये से घर-आंगन रोशन होंगे. रंग-बिरंगे गोबर के ये दिये बच्चों के भी आकर्षण का केंद्र बनेंगे.

गोबर के दिये.
गोबर के दिये.

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Published : Oct 29, 2021, 12:04 PM IST

फिरोजाबाद:दिवाली के मौके पर मिट्टी से बने दियों की खासी मांग होती है और इन्हीं दियों से दिवाली जगमग होती है, लेकिन इस बार गाय के गोबर से बने दीपक भी दिवाली की रौनक बढ़ाएंगे. फिरोजाबाद जिले में इन दिनों दिवाली के लिए गाय के गोबर से बने दीपकों को बनाने का काम चल रहा है. यही नहीं इस गोबर से भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति के अलावा उनकी चरण पादुका है और मालाएं भी बनाई जा रही है. इन्हें बनवाने वाले व्यक्ति का नाम अरिहंत जैन है जो एक गौशाला भी चलाते हैं.

अरिहंत जैन का कहना है कि यह गाय के गोबर से बने उत्पाद जहां एक और शुद्ध और शुभ माने जाते हैं. वहीं इनसे गौशालायें आत्मनिर्भर बनेगी और गाय माता किसी को बोझ नहीं लगेगी. इस कार्य से तमाम महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है.

जानकारी देती महिलाएं.

फिरोजाबाद शहर के जलेसर रोड पर रहने वाले अरिहंत जैन वैसे तो एक गौ पालक है और शनिदेव मंदिर के पास उनकी एक गौशाला भी है. अरिहंत जैन न केवल गाय के दूध पर निर्भर रहते हैं बल्कि वह गाय के गोबर और मूत्र से भी उत्पाद तैयार करते है. गौमूत्र से जहां दवाएं तैयार की जाती है. वहीं, गाय के गोबर में लकड़ी का बुरादा और अन्य केमिकल मिलाकर आकर्षक उत्पाद तैयार किये जाते हैं. अलग अलग त्यौहार के हिसाब से इन्हें तैयार किया जाता है. चूंकि अभी दीवाली का त्यौहार है तो फिलहाल गाय के गोबर से दीपक, भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्तियां, उनकी चरण पादुकायें, शुभ लाभ, मालाएं जैसी कलात्मक वस्तुओं को तैयार किया जा रहा है. वैसे तो इन्हें एक दम साधारण तरीके से बनाया जाता है, लेकिन बाद में इन्हें सुखाने और इनमें रंग भरने के बाद इन्हें काफी आकर्षक बनाया जाता है.

फिरोजाबाद में फिलहाल इन्हें बनाने का काम चल रहा है और बड़े पैमाने पर उन्हें बाहर भी भेजा जा चुका है. अरिहंत जैन के यहां 10 से 15 महिलाओं द्वारा इस कार्य को किया जा रहा है. इस कार्य से इन महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है. अरिहंत जैन बताते है कि इस कार्य से उनकी भी जीविका चल रही है साथ ही महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है. साथ ही किसी सरकारी सहायता के गायों का भी भरण पोषण हो रहा है. उनका कहना है जो लोग गायों को छोड़ देते है या फिर गौशाला खोलकर सरकारी अनुदान पर निर्भर रहते हैं. वह लोग भी गौ मूत्र और गोबर से गौशाला को आत्मनिर्भर बना सकते है. उन्होंने बताया कि जो दीपक है उनकी सप्लाई प्रदेश से बाहर भी काफी मात्रा में होती है. खासकर धार्मिक स्थानों पर यह ज्यादा बिकते है क्योंकि धार्मिक स्थानों पर गाय के गोबर से बने दीपों को प्रज्वलित करना काफी शुभ माना जाता है.

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