फतेहपुर: जिले में केला की खेती करने वाले किसानों को इस वर्ष कोरोना की वजह से मायूसी हाथ लगी. जनपद में बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा केले की खेती की जाती है. इनके द्वारा तैयार केले का आस-पास के कई जनपदों सहित प्रदेशों में निर्यात होता है. ऐसे में केला किसानों को बढ़ावा देने के लिए अनुदान योजना चलाई जा रही है. इसमें किसानों को टिशू कल्चर के पौधे लगाने पर अनुदान दिया जाता है. यह योजना पिछले वर्ष से लागू है, लेकिन जागरुकता के आभाव में ज्यादा किसान इसका लाभ नहीं ले सके. इस वर्ष इसमें पहले से अधिक तेजी लाने की योजना है.
टिशू का पौधा महंगा होने के कारण किसानों द्वारा केले की सामान्य गांठ का उपयोग किया जाता है. इसमें मेहनत और लागत बराबर होती है, लेकिन नुकसान के विकल्प कुड़ होते हैं. इसलिए किसानों को नुकसान से उबारने और अच्छी पैदावार के लिए टिशू पौधों पर सरकार अनुदान दे रही है. बता दें कि किसानों को केले की सामान्य गांठ 4 रुपये प्रति पौधे पड़ती है, जिसका जमाव 70-85 प्रतिशत तक होता है. टिशू का पौधा 17 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से पड़ता है, जिसका जमाव 90% से अधिक होता है. किसान टिशू पौधों का उपयोग कर सकें, इसके लिए सरकार ने 17 रुपये के पौधे में 14 रुपये का अनुदान देती है.
बड़े पैमाने पर होती है केले की खेती
जिले में बड़ी मात्रा में केले की खेती की जाती है. आंकड़ों की बात करें तो करीब 8000 एकड़ में केले की फसल की जाती है. यानी करीब 48 हजार बीघे में केले की बुआई होती है. 18 महीनों की इस फसल में एक बीघे में करीब 30 हजार की लागत आती है और 80 हजार से 1.5 लाख तक की बिक्री होती है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में किसानों को केले की फसल से करोड़ों रुपये की आमदनी होती है.