फतेहपुर:जिले के कलेक्ट्रेट स्थित गांधी मैदान में जनपद स्तरीय किसान गोष्ठी एवं मेले का आयोजन किया गया. इसका उद्घाटन जिलाधिकारी संजीव सिंह ने फीता काटकर किया. मेले का उद्देश्य किसानों को उन्नत एवं तकनीकी कृषि हेतु जागरूक करना था. रबी की फसल बुआई हेतु किस प्रकार तकनीकी का प्रयोग कर किसान अपनी आय को बढ़ा सकते हैं, इन सब के लिए भी किसानों को जानकारियां दी गई.
कृषि वैज्ञानिक ने किसानों से कहा कि अपना बीज स्वयं तैयार करें. लगाए गए विभिन्न स्टाल
एक दिवसीय गोष्ठी एवं मेले में हिस्सा लेने के लिए जनपद के कोने-कोने से किसान पहुंचे थे. इस अवसर पर विभिन्न संस्थाओं व किसानों द्वारा अपने-अपने स्टॉल लगाए गए थे. इसमें बढ़ती कृषि तकनीकी के मद्देनजर विभिन्न कृषि यंत्रों सहित सोलर उपयोग, खाद, बीज, नर्सरी, सब्जियों के सैंपल, सब्जियों की नर्सरी आदि के स्टाल शामिल रहे. इसके अतिरिक्त फसलों की सुरक्षा हेतु उपयोग की जाने वाली दवाओं के भी स्टाल लगाए गए थे.
किसानों ने अपनी जरूरत के हिसाब से जानकारियां प्राप्त की हैं. दी गईं ये जानकारियां
बताते चलें कि न सिर्फ स्टाल लगाए थे, बल्कि उनमें किसानों को उससे सम्बंधित जानकारियां भी दी जा रही थीं. साथ ही किसानों ने अपनी जरूरत के हिसाब से जानकारियां प्राप्त की हैं. जिलाधिकारी ने सभी स्टालों पर जाकर उनका निरीक्षण किया और किसानों का उत्साहवर्धन भी किया. इस अवसर पर डीएम संजीव सिंह, उप कृषि निदेशक बृजेन्द्र सिंह, कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र स्वरूप, मौसम वैज्ञानिक सचिन शुक्ला सहित अन्य अधिकारी व कर्मचारीगण उपस्थित रहे.
कृषि वैज्ञानिक ने बताई विशेष तकनीक
कृषि वैज्ञानिक ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि आने वाली रबी फसल की बुआई हेतु किसान उन्नत तरीके से अपने खेतों को तैयार करें. बीज को संशोधित करने के उपरांत ही बुआई करें. इससे जमाव अच्छा हो सके और लागत कम लगे. उन्होंने कहा कि अपने खेतों को अधिक से अधिक हरी खाद दें. इसके लिए धान की फसल के दौरान खेत के किनारे ढेंचा को बुआई कर दें और धान कटने के बाद उस ढेंचे को उसी खेत में तोड़ दें. खेत को सबसे अधिक उर्वर सड़ने और गलने वाली चीजें बनाती हैं. इसके लिए आप लोग विशेष ध्यान दें.
अपना बीज स्वयं तैयार करें
कृषि वैज्ञानिक ने किसानों से कहा कि अपना बीज स्वयं तैयार करें. पहले वर्ष एक थोड़े हिस्से में बीज की बुआई कर अगले वर्ष के लिए बीज तैयार कर लें. इससे आप लोगों को बीज हर वर्ष खरीदना न पड़ेगा. परोक्ष रूप से इसी को स्वावलंबी खेती कहते हैं. इसी से किसान आत्मनिर्भर बनेंगे.