फर्रुखाबादः जिले में हॉपर कीट के हमले से आम की बागवानी चौपट होने की कगार पर है. इस बार आम के बागों में अच्छे बौर आने के बाद बागवानों के चेहरों पर खुशी दिखाई दे रही थी. वहीं हॉपर कीट के हमले से अब बागवान परेशान हैं. सफेद रंग के महीन भुनगों से निपटने के लिए बागवान कीटनाशक के छिड़काव में जुट गए हैं, लेकिन इन भुनगों पर दवा का असर नहीं हो रहा है.
आम की बागवानी पर कीटों का हमला. आम के बौर हुए काले
फर्रुखाबादी आम पर इस बार संकट के बादल मंडरा रहे हैं. होली के ठीक 1 दिन पहले यहां बागों पर हॉपर नामक कीट ने हमला कर दिया. बागवान जब तक कुछ समझ पाते तब तक लसी रोग का भी हमला हो गया. एक साथ दो बीमारियों से बागों में फसल चौपट होने के कगार पर है. बागों में लसी रोग के कारण पेड़ की नई कोपल नष्ट होती दिखाई पड़ रही हैं. साथ ही बौर काले पड़ गए हैं.
पेड़ों के तने पर बागवान बांध रहे पन्नी
बागवान आनंद और हरपाल ने बताया कि फर्रुखाबाद में कई जगहों पर बड़े पैमाने पर आम के बाग हैं. हजारों बीघा आम की फसल कीटों के लगने से बर्बाद हो रही है. हॉपर भुनगे के हमले के बाद दवाओं का छिड़काव किया गया, लेकिन सारी दवाएं बेअसर साबित हुईं. यह कीट जिस पेड़ पर हमला करता है, उस पर थोड़ी ही देर में पेड़ का बौर काला पड़ जाता है. बागवानों ने बताया कि आम के तने पर पन्नी बांध देते हैं, जिससे महीन भुनगे पेड़ के ऊपर न चढ़ सकें.
कीटों से बचाव के लिए पन्नी बांधते बागवान. यह भी पढ़ेंः-निधि समर्पण अभियान में मिले 5460 करोड़ रुपये, 22 करोड़ के चेक बाउंस
कीटों पर नियंत्रण पाना होता है कठिन
जिला उद्यान अधिकारी आरएन वर्मा ने ईटीवी भारत को बताया की मैंगो हॉपर और मिली बग आम में लगने वाले कीड़े हैं. इनसे बचाव के लिए नवंबर-दिसंबर में ही पेड़ों पर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए. एक बार कीटों के सक्रिय होने पर इन पर नियंत्रण थोड़ा कठिन हो जाता है. इसके लिए किसानों को इमिडाइक्लोप्रिड या डाईमेथाएड की 1.5 से 2 एमल दवा को 1 लीटर पानी में मिलाकर पेड़ों पर छिड़काव करना चाहिए. एक दो बार छिड़काव करने से कीट मर जाते हैं. इसके अलावा लसा या खर्रा रोग से बचाव को कार्बेंडाजिम या कॉपर ऑक्सिक्लोराइड को 2 एमल प्रति लीटर की दर से पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.