फर्रुखाबाद:तीन सौ साल पहले फर्रुखाबाद को बसाने वाले नवाब मोहम्मद खान बंगश का मकबरा आज बदहाली में है. मकबरे के गुंबद जगह-जगह से टूट चुके हैं, साथ ही मकबरे का फर्श भी चटक गया है. इसके अलावा मकबरे के चारों ओर ऊंची-ऊंची झाड़ियां उग आयी हैं. नवाब मोहम्मद खां बंगश का मकबरा पुरातत्व विभाग के अधीन होने के बावजूद गुमनामी के अंधेरे में है.
गुमनामी के अंधेरे में फर्रुखाबाद को बसाने वाले नवाब का मकबरा - nawab mohammad khan bangash tomb
फर्रुखाबाद की नींव रखने वाले नवाब मोहम्मद खान बंगश का मकबरा अब बदहाली और गुमनामी के अंधेरे में हैं. हर साल 27 दिसंबर को नवाब मोहम्मद खान बंगश की याद में मकबरे पर फातिहा और गुलपोशी का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. आइए जानते हैं मकबरे के बारे में कुछ खास बातें.
![गुमनामी के अंधेरे में फर्रुखाबाद को बसाने वाले नवाब का मकबरा nawab mohammad khan bangash tomb](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/768-512-7662667-thumbnail-3x2-im.bmp)
कौन थे नवाब मोहम्मद खान बंगश ?
नवाब मोहम्मद खान बंगश का जन्म 1665 को फर्रुखाबाद के मऊ रशिदाबाद में हुआ था. इनके पिता ऐन खान बंगश अफगानिस्तान में एक कबीले के सरदार हुआ करते थे. ऐन खान बंगश रोजी-रोटी की तलाश में हिंदुस्तान आए थे. उनका मऊ के एक पठान की बेटी से विवाह हुआ था. उनके यहां छोटे बेटे के रूप में नवाब मोहम्मद खान बंगश का जन्म हुआ था. इतिहासकार डॉ. रामकृष्ण राजपूत के मुताबिक, साहसी मोहम्मद खान बंगश 20 साल की उम्र से ही युद्ध करने लगे थे. फर्रुखाबाद का नवाब बनने के बाद मोहम्मद खान बंगश ने अपने शहर के विकास और विस्तार के लिए कई नेक काम किए थे. उन्होंने महिलाओं और बच्चों के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाया था, ताकि उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या न हो. वर्ष 1743 को मोहम्मद खान बंगश की मौत हो गई.
फर्रुखशियर का इतिहास
फर्रुखशियर का जन्म 20 अगस्त 1685 को हुआ था. वह एक मुगल बादशाह थे. जो सैयद बंधुओं (मुगल वजीर सैयद अब्दुल्लाह खान बरहा और सैयद हसन अली खान बरहा) की मदद से वर्ष 1713 को मुगल साम्राज्य का शासक बने. फर्रुखशियर ने वर्ष 1713-1719 तक हिंदुस्तान पर शासन किया, लेकिन 1719 को उनकी हत्या कर दी गयी.
नवाब वंश के आखिरी शासक तफज्जुल हुसैन खान को किया मुल्क बदर
इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि मोहम्मद खान बंगश आज के पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वाह के बंगश कबायली से आते थे. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से शिकस्त के बाद 1846 में नवाब वंश के आखिरी शासक तफज्जुल हुसैन खान को मुल्क बदर कर मक्का भेज दिया था. जबकि वर्ष 1857 की क्रांति में नवाब मोहम्मद खान बंगश के उत्तराधिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा लेने की कोशिश की. हालांकि आजादी के बाद नवाब मोहम्मद खान बंगश के कुछ उत्तराधिकारी पाकिस्तान चले गए.
कई जगहों पर टूट चुका है मकबरे का गुंबद
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान नवाब के वंशज काजिम हुसैन खान बंगश ने बताया कि नवाब मोहम्मद खान बंगश का मकबरा पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है. मकबरे के कुछ हिस्सों की हालत तो ठीक है. लेकिन इसके कुछ हिस्से और कई गुंबद टूट चुके हैं. पुरातत्व विभाग ने नीचे से ईंटों के पिलर खड़े कर इन्हें किसी तरह अपनी जगह रोके रखा है. मकबरे के चारों ओर ऊंची-ऊंची घास और झाड़ियां उगी रहती हैं. हमें सफाई करने और रखवाली करने की अनुमति नहीं मिल रही है. कई असमाजिक तत्व मकबरे की जमीन पर अतिक्रमण कर रहे हैं.
मुफलिसी के दौर से गुजर रहे नवाब के वंशज
मोहम्मद खान बंगश के वंशज ने बताया कि पुश्तैनी महल बिक गया और अब वो काशीराम कॉलोनी में रहते हैं. परिवार में एक बेटा जावेद हुसैन खान है और वह भी बेरोजगार है. किसी तरह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर खर्च चला रहा है. जावेद के 5 बेटियां हैं. काजिम खान बहादुरगंज में अपने वंशज इमदाद हुसैन खान व खादिम हुसैन खान के मकबरे की देखभाल कर समय काट रहे हैं.
मकबरे की देखभाल को संभ्रांत लोगों की बनाई समिति
इस बारे में समिति सदस्य शफील अहमद खान ने बताया कि मकबरे की देखभाल के लिए शहर के संभ्रांत लोगों की एक समिति बनाई गई है. हर साल 27 दिसंबर को उनकी याद में मकबरे पर फातिहा और गुलपोशी का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. मकबरे के गुंबद और फर्श को दुरस्त करने की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग की है. इसकी देखभाल के लिए डीएम ने अपना एक चौकीदार रखा था. लेकिन चौकीदार कभी आता है, कभी नहीं आता. देश की तमाम खास पुरातात्विक इमारतों में यह अहमियत रखता है. इसलिए इसे सहेजना जरूरी है.
इतिहासकार डॉ. रामकृष्ण राजपूत ने बताया कि मोहम्मद खान बंगश वीर थे. वह लड़ाइयां लड़ते थे. उस समय फर्रुखशियर की दिल्ली में हुकूमत थी. फर्रुखशियर ने नवाब बंगश को कई प्रदेशों को उत्तराधिकारी भी बनाया था.