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एलएसी पर चीन को धूल चटाने को अब भी तैयार हैं पूर्व सैनिक

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Published : Jul 1, 2020, 10:58 PM IST

लद्दाख के गलवान में भारत और चीन के बीच हुई सैन्य झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए. इसको लेकर उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में पूर्व सैनिकों का गुस्सा भी चरम पर है. जिंदगी के अंतिम पड़ाव में होने के बावजूद फर्रुखाबाद के पूर्व सैनिक चीनियों को एक बार फिर से धूल चटाने के लिए तैयार हैं.

सैन्य झड़प के बाद पूर्व सैनिकों का गुस्सा चरम पर
सैन्य झड़प के बाद पूर्व सैनिकों का गुस्सा चरम पर

फर्रुखाबादः पूर्वी लद्दाख के गलवान में हुई सैन्य झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए. सैनिकों के शहीद होने से वीर भूमि कहे जाने वाले गांव मौधा के पूर्व सैनिकों का गुस्सा भी चरम पर है. योद्धाओं का कहना है कि चीन का पीठ पर वार करना कोई नई बात नहीं है, यह उसकी पुरानी आदत है.अपनी वीरता का पराक्रम दिखा चुके रणबांकुरों का कहना है कि जिंदगी के अंतिम पड़ाव में होने के बावजूद वह चीनियों को एक बार फिर से धूल चटाने को तैयार हैं.

पूर्व सैनिकों ने ताजा की पुरानी यादें
गांव मौधा के पूर्व सैनिक दिवारी सिंह ने 1962 में चीन, 1965 में पाकिस्तान और 1971 के युद्ध में हिस्सा लिया था. चीन के साथ हुई झड़प में शहीद हुए 20 भारतीय जवानों की खबर पर वह दुखी हैं. उन्होंने पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया कि 17 अक्टूबर की रात करीब 2 बजे चीन की सात गुनी सेना ने धोखा देकर हमला किया था. उसमें कई भारतीय जवान शहीद हुए थे और कई सैनिकों को बंधक बना लिया गया था, लेकिन भारतीय जवानों ने भी चीन को मुंह तोड़ जवाब दिया था. उन्होंने कहा कि भारत की सेना बहुत शक्तिशाली है. उसे चीन को जवाब देना ही चाहिए. पूर्व सैनिक सेवा परिषद के महासचिव सीपी सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि फर्रुखाबाद में लगभग 15 हजार से अधिक रिटायर्ड सैनिक हैं.

सैन्य झड़प के बाद पूर्व सैनिकों का गुस्सा चरम पर.

चीन ने धोखे से किया था हमला
पूर्व सैनिक दिवारी सिंह ने बताया कि 1962 में वह अपने साथियों के साथ शीला पहाड़ी पर तैनात थे. उन्होंने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू कहते थे ओम शांति, चीन कहता था हिदी-चीनी भाई-भाई. इसके बावजूद 17 अक्टूबर को चीनी सेना ने बृज वन, शीला पहाड़ी, बृज टू, सफर कैंप, बमडीला, चाकू पोस्ट और डंगाबेजी पर एक साथ धोखे से हमला कर दिया था.

दुश्मन को धूल चटाने को तैयारपूर्व सैनिक
पूर्व सैनिकों ने कहा कि चीन हमेशा पीछे से वार करता आया है. दोनों देशों में बातचीत होने के बाद भी एक बार फिर से 15 जून को सैनिकों पर धोखे से बार किया गया, लेकिन हमारी सेना ने उनको मुंहतोड़ जवाब दिया. उन्होंने कहा कि हमारे 20 सैनिक शहीद हुए, लेकिन चीन के भी कई सैनिक मारे गए और जख्मी हुए. शहीदों को नमन करते हुए उन्होंने कहा कि चीन, भारत को 1962 वाला भारत आंकने की गलती न करे. चीन को जवाब देने में भारतीय सेना सक्षम है. देश को जरूरत पड़ी तो पूर्व सैनिक बॉर्डर पर जाकर दुश्मन को धूल चटाने के लिए तैयार हैं.

सन् 1962 में हुई थी चूक
चीन के मुद्दे पर दिवारी सिंह ने बताया कि 1962 में चीन के सैनिक ज्यादा थे और उनके हथियार भी अच्छे थे. हमारी सेना के पास हथियार भी कम थे. इस युद्ध में 10 से 12 हजार भारतीय सैनिक उतरे थे, जबकि चीन की ओर से 80 हजार सैनिक युद्ध के मैदान में भारत के खिलाफ लड़े. युद्ध में भारत ने अपनी हवाई सेना का उपयोग नहीं किया था. हमला इतना जबरदस्त था कि कुछ तो शहीद हो गए और कुछ सैनिक पहाड़ियों पर चढ़ गए. वहीं कुछ सैनिकों को कैद कर लिया गया, जिसमें मौधा गांव के हरिहर सिंह व मेजर जगदीश सिंह थे. 15 दिन तक वह अपने 70-80 अन्य साथियों के साथ भूखे-प्यासे पहाड़ों पर घूमते रहे, जिसके बाद वह मीठावली कैंप में पहुंचे.

थ्री नाॅट थ्री रायफल से लड़ा था युद्ध
सूबेदार शिवनाथ सिंह ने बताया कि उस समय थ्री नाॅट थ्री रायफल से चीन से युद्ध लड़ा गया था. बोल्ट एक्शन वाली रायफल होने के कारण उसमें एक बार फायर करने के बाद रुकना पड़ता था. उस रायफल में दोनों हाथों का प्रयोग करके ही फायर किया जा सकता था. थ्री नाॅट थ्री रायफल फायर के समय पीछे की ओर झटका मारती है, लेकिन अब हमारी सेना के पास अब ऑटोमैटिक विदेशी हथियार हैं.

आज की सेना काफी मजबूत
रिटायर्ड सैनिकों का कहना है कि आज का भारत 1962 वाला भारत नहीं है. चीन को जवाब देने में हमारी सेना सक्षम है. उन्होंने बताया कि तब हमारे पास गाड़ियां भी नहीं थीं, कई-कई किलोमीटर तक पैदल चलकर सीमा तक पहुंचते थे, लेकिन अब आधुनिक गाड़ियां और हवाई जहाज के सफर से एक जगह से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुंचा जा सकता है. अब हमारी सेना के पास अब ऑटोमैटिक विदेशी हथियार हैं. शॉर्ट नोटिस पर टी-72, टी-90 टैंकों और बोफोर्स जैसी आर्टिलरी गनों को लद्दाख सीमा पर तैनात किया जा सकता है. स्वीडन से हासिल बोफोर्स तोपों ने करगिल युद्ध के दौरान अपनी उपयोगिता साबित की थी और पाकिस्तानी घुसपैठियों के छ्क्के छुड़ा दिए थे. इस तोप की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह 3 से लेकर 70 डिग्री के ऊंचे एंगल तक फायर कर सकती हैं.

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