इटावा: जिले के जसवंतनगर कस्बे में शिवभक्त लंकेश रावण को संकटमोचक माना जाता है. इसीलिए यहां प्रभु राम के द्वारा रावण का वध तो किया जाता है, लेकिन रावण के पुतले को जलाया नहीं जाता है.
इटावा: रावण को माना जाता है संकटमोचक, वध तो करते हैं लेकिन जलाते नहीं
उत्तर प्रदेश के इटावा में 60 वर्ष पुरानी जसवन्तनगर की रामलीला मंचीय नहीं है बल्कि मैदानी है. यहां रामलीला का प्रदर्शन पूरे कस्बे की सड़कों पर होता है. रावण का वध किया जाता है, लेकिन रावण के पुतले को जलाया नहीं जाता है. इसीलिए देश की सुप्रसिद्ध रामलीलाओं में इस रामलीला का जिक्र किया जाता है.
इसे भी पढ़ें-शारदीय नवरात्र के साथ रामलीला का हुआ समापन, बुराई के प्रतीक रावण का किया गया दहनरावण को मानते हैं संकटमोचकइटावा जिले के जसवन्तनगर कस्बे के वासी यह मानते हैं कि त्रेता युग में रावण ने अपने तप और शक्ति बल पर तीनों लोकों के देवताओं और समूचे ब्रह्मांड में विचरण करने बुरी आत्माओं को अपने वश में कर लिया था. बस इसी धारणा को जसवन्तनगर वासी भी मानते आ रहे हैं.रावण को मारते है लेकिन जलाते नहींयहां की रामलीला में प्रभु श्री राम अपने वाणों से लंकाधिपति रावण का जब वध कर देते हैं, तब जसवन्तनगर के वासी रामलीला में बने रावण के पुतले का एक एक अंग अपने घरों, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर रखने के लिये ले जाते हैं. यहां के लोगों का मानना है कि रावण के शरीर का कोई अंग घर, दुकान या व्यापारिक प्रतिष्ठान पर रखा जाता है, तो गलत आत्माएं उस स्थान में प्रवेश नहीं करतीं हैं.
सभी पात्र होते हैं ब्राह्मण बिरादरी के
इटावा के जसवन्तनगर की यह रामलीला 160वर्ष पुरानी है. पूरे देश मे यह रामलीला अपने पात्रों और उनकी मर्यादित लीला मंचन के कारण प्रसिद्ध है. यहां की रामलीला में राम से लेकर रावण तक का किरदार निभाने वाला प्रत्येक पात्र ब्राह्मण बिरादरी से ही रखा जाता है. साथ ही जब तक ये कलाकार रामलीला में रोल प्ले करते हैं, तब तक उनकी मंदिरों में रहने की व्यवस्था की जाती है. साथ ही ये सभी कलाकार अन्न ग्रहण नहीं करते हैं. यहां रावण का वध पाचक नक्षत्र में ही किया जाता है. इसलिये जब पूरे देश मे रावण का वध हो जाता है उसके बाद यहां रावण का वध किया जाता है.