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मिट्टी के दीये बना आत्मनिर्भर बन रहे इस गांव के युवा

यूपी के एटा में युवा मिट्टी के दीये बनाकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं. इससे वे न सिर्फ मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि युवाओं को प्रेरित भी कर रहे हैं. युवाओं का कहना है कि प्रधानमंत्री जी के लोकल फॉर वोकल कैंपेन को ध्यान में रखते हुए हम युवा अपने पारंपरिक कार्य मे जुट गए हैं.

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Published : Nov 8, 2020, 4:41 PM IST

मिट्टी के दीये बना आत्मनिर्भर बने युवा.
मिट्टी के दीये बना आत्मनिर्भर बने युवा.

एटा:विश्वव्यापी कोरोना वायरस के चलते युवाओं के लिए रोजगार का एक बड़ा संकट आ गया था. इसके बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से आत्मनिर्भर बनने की आपील की तो इन लोगों ने अपने पारंपरिक कार्य को फिर शुरू कर दिया. एटा जिले में आत्मनिर्भर भारत के तहत मेक इन इंडिया को प्रोत्साहन देने के लिए जिले के हरसिंह गांव के युवा कुम्हार मिट्टी के दीये बनाकर न सिर्फ मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि युवाओं को प्रेरित भी कर रहे हैं.

मिट्टी के दीये बना आत्मनिर्भर बने युवा.

अयोध्या से भी मिला है ऑर्डर
गांव के रहने वाले महेंद्र प्रजापति बताते हैं कि प्रधानमंत्री जी के लोकल फॉर वोकल कैंपेन को ध्यान में रखते हुए हम युवा अपने पारंपरिक कार्य मे जुट गए हैं. हमारी फैक्ट्री में करीब बारह लोग कार्य कर रहे हैं जो कोरोना के चलते दिल्ली, गुजरात एवं अन्य राज्यों से वापस आए हैं. लोकल फॉर वोकल के चलते इस बार हमारा दीपक बनाने का कार्य दोगुना हुआ है. 21 मशीनों से 21 डिजाइनों के दीये दीपावली के लिए बनाए जा रहे हैं. कई जनपदों से दीयों बनाने के ऑर्डर प्राप्त हुए हैं. लगभग सभी के ऑर्डर भेज दिए गए हैं. अयोध्या में जलने वाले दीयों में भी हमारे दीये होंगे. इसके लिए एक गाड़ी अयोध्या भी भेजी गई है. फैक्ट्री में काम करने वाली सोनकली ने बताया कि हमें इस बार पहले की अपेक्षा अधिक रोजगार मिला है.

बता दें वर्तमान में मिट्टी के कार्य से प्रजापति (कुम्हार) समाज के अधिकांश लोगों ने मुंह मोड़ लिया था और अन्य राज्यों में प्राइवेट कंपनियों में नौकरी, मेहनत मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. पारंपरिक मिट्टी के बर्तन बनाने के कार्य में मेहनत अधिक और कमाई कम है इस ओर से समाज के युवाओं का लगाओ कम हो रहा था. लेकिन अब युवाओं ने नई तकनीकी का सहारा अपनाया और अपने पारंपरिक कार्य को नया रूप दिया दिया हम बात कर रहे हैं.

तकनीकी से दोगुना हुआ रोजगार
इस गांव में कुम्भकार समाज से जुड़े लगभग बारह परिवार रहते हैं. सभी परिवार अपने पारंपरिक कार्य मे जुट गए हैं. सबसे बड़ी बात थी है युवाओं ने अब मिट्टी के बर्तन बनाने वाले चाक को अलग रखते हुए बर्तनों जैसे कई डिजाइनों के दीये, चाय और दूध के ग्लास अन्य बर्तनों के लिए फर्मा तैयार कराकर डाई (जिससे फर्मा को दबाने का कार्य करती है) का उपयोग कर रहे हैं तो कहीं इलेक्ट्रॉनिक चाक का उपयोग भी कर रहे हैं. नई तकनीकी से युवा अब अपने पारंपरिक रोजगार का दोगुना कर रहे हैं.

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