एटा: पीएम मोदी द्वारा देश में चलाए जा रहे 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मिशन शक्ति' अभियान की मिसाल एटा में एक डॉक्टर बहू ने पेश की है. जिले के निधौली कला ब्लॉक के गांव बाबसा की रहने वाली डॉक्टर बहू दीपाली ने उस बंजर भूमि पर स्ट्रॉबेरी की फसल उगा दी, जिस भूमि पर कोई फसल नहीं होती थी.
जिले के निधौली कला ब्लॉक के गांव बाबसा की रहने वाली डॉ. दीपाली अपने पति डॉक्टर जसवंत सिंह के साथ दिल्ली में होम्योपैथिक का क्लीनिक चलाती हैं. दोनों पति-पत्नी ने डॉक्टरी की पढ़ाई साथ साथ की थी. उसके बाद दिल्ली में अपना क्लिनिक खोल लिया था. लॉकडाउन से कुछ दिन पहले ही दीपाली अपने पिता तानाजी राव के साथ मायके पुणे महाराष्ट्र में गई थी. वहां कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन में 2 महीने तक पुणे में फंसी रहीं. वहां फंसे रहने के चलते डॉ. दीपाली ने स्ट्रॉबेरी की खेती करने की जानकारी जुटाई और अपनी ससुराल में फसल उगाने की ठान ली. ससुराल पहुंचते ही अक्टूबर में मार्केट से स्ट्रॉबेरी के बीज लाकर पौध तैयार की. 12 बीघा बंजर भूमि में जैविक खाद का उपयोग कर पौधारोपण कर दिया. उसके बाद फसल की जंगली जानवरों से रखरखाव के लिए खेतों के चारों ओर बैरिकेडिंग भी लगाई. वहीं जनवरी में फल आना शुरू हो गए. अब स्ट्रॉबेरी की फसल को अच्छे दामों में आगरा कानपुर और दिल्ली के बाजारों में बेचा जा रहा है.
लॉकडाउन में शुरू की खेती
डॉ दीपाली ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन से 2 महीने पहले ही अपने पिताजी तनाजीराव के साथ अपने मायके महाराष्ट्र (पुणे) गई हुई थी. लॉकडाउन के कारण वहां मैं फस गई. उन्होंने बताया कि हमारे मायके में कई वर्षों से स्ट्रॉबेरी की फसल हो रही थी, जिससे अच्छा मुनाफा हो रहा था. वहां फंसे होने के कारण मेरे मन में विचार आया कि क्यों न स्ट्रौबरी की खेती उत्तर प्रदेश में की जाए. उसके बाद यहां दो माह तक खेती करने का प्रशिक्षण लिया. फिर वहां से अपनी ससुराल एटा आने के बाद अक्टूबर में स्ट्रॉबेरी की पौध तैयार की. उसके बाद 12 बीघा बंजर भूमि जिसमें फसल सही से नहीं होती थी,उस भूमि को जैविक खाद से तैयार किया और 56 हजार पौधों का रोपण किया. स्ट्रॉबेरी की पौध बहुत बहुत कमजोर होती है. इसकी बहुत देखभाल भी करनी पड़ती है. इस फसल को तैयार करने में लगभग 9 लाख रुपये की लागत आई. अब हमारी फसल पूरी तरह से पक चुकी है. जिसे 2 किलो स्ट्रॉबेरी का डब्बा तैयार कर पैक करके दिल्ली, कानपुर और आगरा के बाजारों में बेचा जा रहा है. हमें उम्मीद है कि इस फसल से हमें लगभग दोगुना मुनाफा होगा.
गांव से लगभग 4 किमी दूर जंगल में है खेत
डॉ. दीपाली ने बताया कि हमारा खेत जिसमें स्ट्रॉबेरी उगाई गई है. वह हमारे गांव बाबसा से लगभग 4 किलोमीटर दूर नहर के किनारे जंगल में है. जहां दूर-दूर तक जंगल जैसा माहौल है और आस-पास बहुत कम खेती होती है. जंगली जानवरों से फसल के बचाव के लिए खेत के चारों तरफ बैरिकेट्स कराया गया है. रात में रखवाली के लिए यहां दो लोगों को रखा जाता है.