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देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी आहुति देने वाले अमर शहीद महावीर सिंह राठौर

देश को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने वाले कई क्रांतिकारी ऐसे भी हैं, जिनके बारे में हमने बहुत कम ही जाना और सुना होगा. इनमें से ही एक हैं, अमर शहीद महावीर सिंह. जिनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. क्रांति की चिंगारी भड़काने वाले महावीर सिंह को जेल में कई यातनाओं से गुजरना पड़ा था. उसके लिए जब उन्होंने आवाज उठाई, तो उन्हें जेल में ही मार दिया गया.

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अमर शहीद महावीर सिंह राठौर

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Published : Sep 16, 2020, 4:19 PM IST

एटा: एटा में जन्मे अमर शहीद महावीर सिंह राठौर का जन्म 16 सितम्बर 1904 को शाहपुर टहला में कुंवर देवी सिंह राजवैध के यहां हुआ था. महावीर सिंह राठौर 1927 में लाहौर गए थे. वहां लाहौर षड्यंत्र केस में भाग लेने के कारण वे 1929 में अपने घर से गिरफ्तार हुए. 1930 को आजन्म कारावास की सजा मिलने पर पहले मुल्तान सेन्ट्रल जेल में रखे गये. फिर 1931 में वे मद्रास जेल भेजे गये. उसके बाद उन्हें अण्दमान की सेलूलर जेल (कालापानी) भेजा गया, जहां उन्होंने 1933 को जेल की नारकीय यंत्रणा के विरुद्ध आमरण अनशन किया. इस अनशन के दौरान 1933 को जेल अधिकारियों के आदेश पर पठान कैदियों द्वारा उन्हें जबरन दूध पिलाए जाने का प्रयास किया गया. इस दौरान पेट में डाली जा रही नली पेट में न जाकर फेंफड़ों में चली गई, जिसके चलते उनकी मृत्यु हो गई.

भारत को अंग्रेजों से लड़कर आजादी दिलाने वाले अमर शहीद महावीर सिंह एटा के पुरोधा तहसील के ग्राम शाहपुर टहला में 16 सितम्बर 1904 को कुंवर देवी सिंह के घर जन्मे थे. अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या के आरोपी भगत सिंह, राजगुरू, बटुकेश्वर दत्त, चंद्रशेखर आजाद व महावीर सिंह को निरूद्ध किया गया. महावीर सिंह राठौर को क्रमश: मुल्तान सेंट्रल जेल, बेलारी सेंट्रल जेल, मद्रास सेंट्रल जेल और अंत में अंडमान निकोबार में 'कालापानी' की सजा सुनाई गई. जेल प्रशासन ने उन्हें जबरन गिराकर पाइप नली से 17 मई 1933 को प्रात: दूध पिलाया, दूध महावीर सिंह के फेफड़ों में भरने के बाद 17 मई 1933 को देर सायं तड़प-तड़प कर जान देकर शहीदों की श्रेणी में वे अपना नाम अमर कर गये.

एटा मुख्यालय के महावीर पार्क के अलावा उनके पैतृक गांव शाहपुर में महावीर पार्क व पटियाली तहसील मुख्यालय पर महावीर पार्क की स्थापना तो कर दी गयी, लेकिन उनके जन्मदिन व पुण्यतिथि को याद करना सब भूल गए.

यह षड्यंत्र सितम्बर 1928 में अपने पूरे रूप में उभरकर सामने आया. वैसे इसकी शुरूआत पहले ही छोटे-छोटे षड्यंत्रों से हो चुकी थी. इनका विस्तार पंजाब, बिहार व कलकत्ता तक था. ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ के सेन्ट्रल ट्रायल सं. 9/1929 (राज्य बनाम भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त आदि) एवं इसके लिए अध्यादेश संख्या वर्ष 1930 के अंतर्गत गठित किये गये. ‘लाहौर ट्रिब्यूनल’ में इस मुकदमे में कुल 24 आरोपित थे. इनमें क्रमांक 19 के आरोपित भगवानदास को ट्रायल के लिए नहीं भेजा गया, जबकि सं. 20 के आरोपित चंद्रशेखर आजाद, 21 के कालीचरन उर्फ कैलाशपति, 22 के भगवतीचरण बोहरा, 23 के यशपाल व 24 के सतगुरदयाल फरार घोषित किये गये. शेष रहे 18 अभियुक्तों में क्र. 2 पर अंकित आज्ञाराम उर्फ मास्टरजी, 6 पर अंकित सुरिन्द्रनाथ पांडे उर्फ स्टोन 10 जुलाई 1930 को ट्रिब्यूनल के आदेश पर धारा 393 के तहत छोड़े गये.

इसी दिन तीसरा आरोपित भक्तेश्वर दत्त उर्फ बट्टू उर्फ मोहन को भी इसी दिन धारा 494 के तहत छोड़ा गया. मामले के मुख्य आरोपितों में क्र. 1 पर अंकित सुखदेव उर्फ दयाल उर्फ स्वामी उर्फ विलेजर, 7 पर अंकित जयदेव उर्फ हरीशचंद्र, 10 पर अंकित महावीरसिंह (राठौर) उर्फ प्रताप, 11 पर अंकित भगतसिंह, 16 पर अंकित शिवराम राजगुरू ही प्रमुख थे.

7 अक्टूबर 1930 को आजन्म कारावास की सजा मिलने पर महावीर सिंह को पहले मुल्तान सेन्ट्रल जेल में रखा गया. फिर 1931 में मद्रास जेल भेजे गये. 1933 में इन्हें अण्दमान की सेलूलर जेल (कालापानी) भेजा गया, जहां 15 मई 1933 को जेल की नारकीय यन्त्रणा के विरूद्ध आमरण अनशन किया. इस अनशन के दौरान 17 मई 1933 को जेल अधिकारियों के आदेश पर 10-12 पठान कैदियों द्वारा जबरन दूध पिलाए जाने का प्रयास किया गया. जबरन पेट में डाली जा रही नली पेट में न जाकर फेंफड़ों में चली गई और फेंफड़ों में ज्यादा दूध जाने के कारण उनकी मृत्यु हो गई.

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