एटाःसंसार में बहुत से लोग होते हैं, जो इतिहास पढ़ते हैं, पढ़ाते व लिखते हैं, विरले लोग ही होते हैं, जो इतिहास बनाते हैं. कुछ ऐसा ही इतिहास बनाया है जैथरा निवासी पत्रकार सुनील कुमार ने. झूठे मुकदमे में अवैधानिक गिरफ्तारी एवं हथकड़ी लगाकर जेल भेजने के विरुद्ध उन्होंने आवाज उठाई. एनएचआरसी में 6 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सफलता भी हासिल की. मानवाधिकार आयोग ने न सिर्फ उनकी दलीलों को स्वीकार किया बल्कि प्रदेश सरकार को मुआवजा देने का भी आदेश दिया. राज्यपाल की स्वीकृति के बाद शासन ने पीड़ित पत्रकार को 2 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया है. एसएसपी ने मुआवजा की कार्यवाही शीघ्र पूर्ण कराकर पीड़ित के खाते में ट्रेजरी से भुगतान करा दिया है. प्रदेश में इस तरह का ये पहला मामला है.
पुलिस ने 23 जून 2016 को किया था गिरफ्तार
जैथरा कोतवाली में तैनात तत्कालीन थानाध्यक्ष कैलाश चन्द्र दुबे ने छेड़खानी के आरोप में कस्बा जैथरा के मोहल्ला नेहरू नगर निवासी पत्रकार सुनील कुमार को 23 जून 2016 को गिरफ्तार कर अगले दिन 24 जून को हथकड़ी लगाकर जेल भेज दिया था. जेल से छूटने के बाद सुनील कुमार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पूरे प्रकरण की शिकायत करते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की थी. साथ ही हथकड़ी लगाकर ले जाने को गरिमामय जीवन जीने के अधिकार के हनन पर मुआवजा की मांग उठाई थी.
छह साल तक लड़ी लड़ाई
पीड़ित पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के कई महत्वपूर्ण आदेशों के साथ दलील देकर पुलिस के कृत्य को संवैधानिक एवं मानवाधिकार के प्रतिकूल बताया. छह साल चली लंबी जांच के बाद आयोग ने जिले के तत्कालीन एसएसपी अजयशंकर राय, उस समय जैथरा में तैनात रहे थानाध्यक्ष कैलाश चंद्र दुबे, विवेचक मदन मुरारी द्विवेदी को दोषी पाते हुए सम्बन्धितों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए डीजीपी आदेश दिया. साथ ही प्रदेश के मुख्य सचिव को पीड़ित पत्रकार को दो लाख रुपये मुआवजा देने का भी आदेश दिया था. राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उदय शंकर सिंह ने 22 मार्च को पीड़ित के खाते में 2 लाख रुपये की राशि का ट्रेजरी से भुगतान करा दिया है. आदेश एवं रिमाइंडर के बाद भी पीड़ित पत्रकार को मुआवजा राशि का भुगतना न करने से खफा आयोग ने 29 दिसम्बर को सशर्त समन जारी कर प्रदेश के मुख्य सचिव को अग्रिम तिथि 4 अप्रैल, 2022 को पूर्वाह्न 11 बजे आयोग के समक्ष उपस्थित होकर पीड़ित को मुआवजा प्रदान करने का साक्ष्य प्रस्तुत करने का आदेश दिया था. पीड़ित पत्रकार को प्रदान की गई मुआवजा राशि की भरपाई शासन दोषी पुलिसकर्मियों के वेतन से करेगा. इसके शासन ने एसएसपी को आदेश दे दिए हैं.
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पत्रकार की रिहाई को प्रदेशभर में हुआ था आंदोलन
इस घटना के बाद निर्दोष पत्रकार की रिहाई के लिए प्रदेशभर में जगह-जगह पत्रकारों ने प्रदर्शन किए थे. अधिकारियों को ज्ञापन सौंप कर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही मांग उठाई थी. एटा जनपद मुख्यालय पर जिलेभर के पत्रकारों ने प्रदर्शन कर तत्कालीन एसओ का पुतला तक फूंका था. निर्दोष पत्रकार की रिहाई के लिए साथी पत्रकारों के साथ-साथ जिले की जनता ने भी सड़क पर उतर कर न्याय के लिए आवाज बुलंद करते हुए पैदल मार्च निकाला था. भाजपा सांसद मुकेश राजपूत, वर्तमान भजपा विधायक सत्यपाल सिंह राठौर ने सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ पैदल मार्च कर पत्रकार के साथ न्याय को आवाज उठाई थी. वहीं कांग्रेस पार्टी ने ज्ञापन सौंपकर पत्रकार को झूठे मुकदमे में फंसाने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग उठाई थी.
एएसपी कासगंज की जांच में भी हुई थी अवैध गिरफ्तारी की पुष्टि
पीड़ित पत्रकार सुनील कुमार ने आयोग के साथ-साथ शासन में अपने हक की लड़ाई लड़ी. पीड़ित द्वारा की गई शिकायतों पर जिले के पुलिस अधिकारी गुमराहात्मक आख्या भेजते रहे. प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद जब एडीजी कानून- व्यवस्था ने इस प्रकरण की जांच गैर जनपद कासगंज के तत्कालीन एएसपी डॉ. पवित्र मोहन त्रिपाठी से कराई. जांच में पीड़ित द्वारा लगाए गए आरोपों की स्पष्ट पुष्टि हुई.
प्रकरण में एसएसपी सहित फंस चुके हैं 6 पुलिसकर्मी
पत्रकार को झूठे मुकदमे में फंसाने के मामले में अब तक कई पुलिसकर्मी फंस चुके हैं. जिले के तत्कालीन एसएसपी, एसओ व विवेचक पर आयोग कार्यवाही के आदेश दे चुका है.वहीं एसएसपी स्तर से एक हैड मोहर्रिर सहित तीन पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की जा चुकी है.