चित्रकूट: जिला चित्रकूट में बेरोजगारी का आलम यह है कि ग्रामीणों को रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ रहा है. केंद्र सरकार द्वारा संचालित मनरेगा भी मजदूरों के पलायन को रोकने में बौना साबित हुआ है. परिवार के पेट की आग शांत करने के लिए इन ग्रामीणों ने मनरेगा को रोजगार का पूरक समझकर जी तोड़ मेहनत भी की थी. पर मेहनताना न मिलने से व्याकुल इन ग्रामीणों ने अब दूसरे राज्यों में पलायन करने का फैसला किया है.
मजदूरों का कहना है कि हम लोगों से जी तोड़ मेहनत कराई गई और जब पैसे देने की बारी आई तो हम लोग से कहा जाता है कि 10 से 12 दिन में आप लोग के खाते में पैसा आ जाएगा. एक माह से ज्यादा हो गया है और हमारे खाते में अब तक पैसा नहीं आया है. हम लोग भुखमरी की तरफ बढ़ रहे हैं.
बरोजगारी से परेशान मजदूर. मजदूर रमेश ने बताया कि हम लोगों से जी तोड़ मेहनत ली गई. हम लोगों से यही कहा जाता है कि 10 से 12 दिन में आप लोग के खाते में मनरेगा का पैसा आएगा और हम लोग आस में बैठे रहते हैं. एक माह फिर चार महीना हो जाने के बावजूद हमारे खाते में पैसा नहीं आया. हम मजदूर मेहनत करना जानते हैं और मेहनत भी करते हैं. वहीं हम लोगों के घरों में आटा तक नहीं होता 'रोज कमाओ रोज खाओ' की स्थिति में हम लोगों के सामने 4 महीना रुकना बहुत बड़े पहाड़ सा मालूम पड़ता है. मजबूरन हम लोगों को अपना घर गांव छोड़ कर दूसरे राज्यो में भटकना पड़ता है.
वहीं मिथलेश मजदूर ने बताया कि अगर हमें हमारे गांव में ही रोजगार मिल गया होता तो हमें बाहर जाने की क्या जरूरत थी. बेरोजगारी के कारण भुखमरी बाद नौबत यह आई कि अब हमें बाहर दूसरे राज्य जाना पड़ रहा है. हम सभी लोग सूरत जा रहे हैं. जहां हम लोग साड़ी के छपाई का काम करते हैं हमारे सिर्फ गांव से ही बाहरी राज्यों में 70 से 80 ग्रामीण हैं.
हमें इस समस्या का पता चला वैसे हमारे स्तर से एक ही हफ्ते में मनरेगा का पैसा मजदूरों को देने का प्रावधान है. वैसे भी कोई भी ग्रामीण मजदूरी के नाम पर डिमांड भी नहीं करता. हमारे स्तर से कई काम हैं जो इन मजदूरों द्वारा किए जा सकते हैं. गोशाला में यह ग्रामीण सेवा देकर अपना मजदूरी कर जीवन यापन कर सकते हैं.
-दिनेश कुमार अग्रवाल, विकास खण्ड अधिकारी