चित्रकूट: जिले में टिकरिया के पास मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर प्रतिवर्ष एक मेले का आयोजन किया जाता है. इस मेले को त्रिवेणी मेला के नाम से जाना जाता है. इस मेले का प्रारंभ बरौंधा राजा जो अब मध्यप्रदेश में है. उन्होंने 250 वर्ष पूर्व आयोजित किया था. तीन नदियों के संगम के किनारे आयोजित इस मेले का मुख्य उद्देश्य किसानों को आसानी से रोजमर्रा व कृषि संबंधी यंत्र उपलब्ध कराना था. साथ ही आदिवासी जनजाति की युवक-युवतियों को साथी चुनने में सहायता करना था.
त्रिवेणी मेले का किया जाता है आयोजन
जिले में त्रिवेणी मेला यूपी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश बॉर्डर की सीमा से सटे टिकारिया ग्राम पंचायत के करीब प्रतिवर्ष लगता है. इस मेले की शुरुआत बरौंधा नरेश ने की थी. यह विशाल मेला 13 जनवरी से शुरू होकर 18 जनवरी तक चलता है. यहां तीन स्थानीय नदियों का संगम होता है, जो कि पहाड़ों से बहकर आती है. त्रिवेणी में ये तीन धाराएं आपस में मिलती हैं. इन्हीं कारणों से इस स्थान का नाम त्रिवेणी रखा गया है.
250 वर्षों से लगाया जा रहा यह मेला
करीब 250 वर्ष पुराना मेला मकर संक्रांति के अवसर पर लगाया जाता है. यहां हजारों की संख्या में लोग आते हैं और मेले का आनंद लेते हैं. यह मेला मूलत: कोलभील आदिवासियों और किसानों का मेला है. इस मेले में सबसे अधिक संख्या कोल आदिवासियों की होती है. आदिवासी मकर संक्रांति पर लगने वाले इस मेले को अपना सबसे बड़ा त्योहार मानते हुए घर से दूर-दराज नौकरी या काम कर रहे लोग छुट्टी लेकर जरूर आते हैं.