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चित्रकूट: 250 सालों से लग रहा त्रिवेणी मेला, किसानों और आदिवासियों के लिए है वरदान - त्रिवेणी मेले का किया गया आयोजन

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी त्रिवेणी मेले का आयोजन किया गया. इस मेले मुख्यत: आदिवासी और किसान शामिल होते हैं जो अपने सामानों को बेचते हैं.

त्रिवेणी मेले का किया गया आयोजन
त्रिवेणी मेले का किया गया आयोजन

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Published : Jan 17, 2020, 3:29 AM IST

चित्रकूट: जिले में टिकरिया के पास मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर प्रतिवर्ष एक मेले का आयोजन किया जाता है. इस मेले को त्रिवेणी मेला के नाम से जाना जाता है. इस मेले का प्रारंभ बरौंधा राजा जो अब मध्यप्रदेश में है. उन्होंने 250 वर्ष पूर्व आयोजित किया था. तीन नदियों के संगम के किनारे आयोजित इस मेले का मुख्य उद्देश्य किसानों को आसानी से रोजमर्रा व कृषि संबंधी यंत्र उपलब्ध कराना था. साथ ही आदिवासी जनजाति की युवक-युवतियों को साथी चुनने में सहायता करना था.

त्रिवेणी मेले का किया जाता है आयोजन
जिले में त्रिवेणी मेला यूपी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश बॉर्डर की सीमा से सटे टिकारिया ग्राम पंचायत के करीब प्रतिवर्ष लगता है. इस मेले की शुरुआत बरौंधा नरेश ने की थी. यह विशाल मेला 13 जनवरी से शुरू होकर 18 जनवरी तक चलता है. यहां तीन स्थानीय नदियों का संगम होता है, जो कि पहाड़ों से बहकर आती है. त्रिवेणी में ये तीन धाराएं आपस में मिलती हैं. इन्हीं कारणों से इस स्थान का नाम त्रिवेणी रखा गया है.

जानकारी देते संवाददाता.

250 वर्षों से लगाया जा रहा यह मेला
करीब 250 वर्ष पुराना मेला मकर संक्रांति के अवसर पर लगाया जाता है. यहां हजारों की संख्या में लोग आते हैं और मेले का आनंद लेते हैं. यह मेला मूलत: कोलभील आदिवासियों और किसानों का मेला है. इस मेले में सबसे अधिक संख्या कोल आदिवासियों की होती है. आदिवासी मकर संक्रांति पर लगने वाले इस मेले को अपना सबसे बड़ा त्योहार मानते हुए घर से दूर-दराज नौकरी या काम कर रहे लोग छुट्टी लेकर जरूर आते हैं.

मेले में दैनिक उपयोग वाले मिलती है वस्तुएं
पहले आगमन के संसाधन बहुत कम हुआ करते थे. मेला लगाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को आसानी से दैनिक उपयोग की सामग्री लोगों को मेले में ही मिल सके और उन्हें दूर न जाना पड़े. मकर संक्रांति पर किसान फसल की बुवाई कर फुर्सत हो जाता था और मेले में शामिल होता था. वहीं आदिवासी बहुल इस इलाके में नौजवान युवक-युवतियां 1 हफ्ते तक चलने वाले इस मेले में जाकर अपने साथी का चयन करती थीं. इसके बाद उसे अपने घर में अपने परिजनों से परिचय कराने के बाद उनका विवाह कर दिया जाता था.

यह मेला किसानों के लिए होता है वरदान
वहीं किसानों के लिए यह मेला वरदान साबित होता था, जो कई विषयों में आज भी स्थानीय किसानों को यह मेला लाभ पहुंचा रहा है. इस मेले में किसानों के लिए कृषि के कई पुराने और अत्याधुनिक छोटे औजार मिल जाते हैं. इसमें फसल कटाई की हसिया, खुरपी, कढ़ाही इत्यादि सामानों की दुकानें सजाई जाती है. यहां की स्थानीय लोग दूर खरीदारी न कर साल भर की खरीददारी इसी मेले में कर लेते थे.


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