चित्रकूट: जिले का पाठा कहलाए जाने वाले चुरेह कशेरुवा गांव में गर्मियों की शुरुआत होते ही पानी की समस्या भी शुरू हो जाती है. खेती की बात तो दूर ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए मीलों दूर तक भटकना पड़ता है. किसान खेती होते हुए भी पलायन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं. यहां के किसान पेट की आग बुझाने के लिए बड़े शहरों का रुख कर लेते हैं और जो किसान यहां पारंपरिक खेती पर निर्भर हैं, उन्हें तो 2 जून की रोटी के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती है. ऐसे में पानी की समस्या के चलते किसान जहां मजबूरी में पलायन कर रहे हैं, वहीं एक किसान शिवराम मौर्य ने बागवानी कर यह साबित कर दिया है कि मेहनतकश इंसानों की कभी हार नहीं होती. आज खुशहाल शिवराम सिंह मौर्य अपने हुनर को लोगों के बीच में साझा कर उन्हें व्यावसायिक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
बारिश के पानी पर ही निर्भर थे किसान
शिवराम सिंह मौर्य ने बताया कि 15 साल पहले वह पाठा गांव आए, जहां उन्होंने 10 बीघा जमीन खरीदी. तब यहां पर किसानों की बुरी हालत थी. लोग पारंपरिक खेती करते थे, जिससे उनके खेतों से बीज भी वापस नहीं लौटता था. पानी की व्यवस्था आसपास ना होने के चलते लोग बारिश के पानी पर ही निर्भर थे. इन समस्याओं को देख शिवराम ने खेती में कुछ अलग करने की सोची और कम पानी की लागत वाली फसल उगाने की ठान ली.